सदन में समान नागरिक संहिता विधेयक पर चर्चा जारी, सीएम धामी ने कहा उत्तराखंड की विधायिका आज एक इतिहास रचने जा रही है।

देहरादून – मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव दृष्टिपत्र जारी होने के बाद राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की घोषणा की थी। उन्होंने भाजपा के सत्ता में वापसी करने के बाद सबसे पहले समान नागरिक संहिता के मामले में निर्णय लेने का एलान भी किया था। सत्ता में आने के बाद पहली ही कैबिनेट में धामी सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए एक विशेषज्ञ समिति बनाने का फैसला किया था। आज उस ऐतिहासिक क्षण का सबको बेसब्री से इंतजार है। जब सदन में यूसीसी बिल पास होगा।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सत्र यूसीसी विधेयक को लेकर कही ये बात:

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा मैं आज इस अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को बधाई देना चाहता हूँ, क्योंकि आज हमारे उत्तराखंड की विधायिका एक इतिहास रचने जा रही है।

आज इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनते हुए, न केवल इस सदन को बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को गर्व की अनुभूति हो रही है।

हमारी सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ’’एक भारत और श्रेष्ठ भारत’’ मंत्र को साकार करने के लिए उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था।

प्रदेश की देवतुल्य जनता ने हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना आशीर्वाद देकर पुनः सरकार बनाने का मौका दिया। सरकार गठन के तुरंत बाद, पहली कैबिनेट की बैठक में ही समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन किया।

27 मई 2022 को उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति गठित की गई, देश के सीमांत गांव माणा से प्रारंभ हुई यह जनसंवाद यात्रा करीब नौ माह बाद 43 जनसंवाद कार्यक्रम करके नई दिल्ली में पूर्ण हुई।

2 लाख 32 हजार से अधिक सुझाव प्राप्त हुए। प्रदेश के लगभग 10 प्रतिशत परिवारों द्वारा किसी कानून के निर्माण के लिए अपने सुझाव दिए। हमारे प्रदेश की देवतुल्य जनता की जागरूकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

जिस प्रकार से इस देवभूमि से निकलने वाली मां गंगा अपने किनारे बसे सभी प्राणियों को बिना भेदभाव के अभिसिंचित करती है, इस सदन से निकलने वाली समान अधिकारों की ये गंगा हमारे सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करेगी।

नागरिकों के बीच भेद को कायम रखा गया? क्यों समुदायों के बीच असामनता की खाई खोदी गई? लेकिन अब इस खाई को भरा जाएगा। यह काम आज से, अभी से, यहीं से शुरू होगा।

समान नागरिक संहिता, विवाह, भरण-पोषण, गोद लेने, उत्तराधिकार, विवाह विच्छेद जैसे मामलों में भेदभाव न करते हुए सभी को बराबरी का अधिकार देगा। यही प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार भी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में कहा कि यही समय है, सही समय है। अब समय आ गया है कि महिलाओं के साथ होने वाले अत्यचारों को रोका जाए।

आजादी से पहले हमारे देश में जो शासन व्यवस्था थी, उसकी सिर्फ एक ही नीति थी और वो नीति थी फूट डालो और राज करो। अपनी उसी नीति को अपनाकर उन्होंने कभी भी सबके लिए समान कानून का निर्माण नहीं होने दिया।

संविधान सभा ने इससे संबंधित विषयों को संविधान की समवर्ती सूची का अंग बनाया है। जिससे केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी अपने राज्य के लिए समान नागरिक संहिता पर कानून बना सकें।
आखिर क्यों आजादी के बाद 60 सालों से अधिक समय तक राज करने वाले लोगों ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारें में विचार तक नहीं किया। वे राष्ट्रनीति को भूलकर सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते रहे।
हमारी माताओं-बहनों के इंतजार की घड़िया अब समाप्त होने जा रही हैं। उत्तराखण्ड इसका साक्षी बनने जा रहा है जिसके निर्माण के लिए इस प्रदेश की मातृशक्ति ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।
हमारी सरकार का यह कदम संविधान में लिखित नीति और सिद्धांत के अनुरूप है। यह महिला सुरक्षा तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

हमारे देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रऋषि नरेन्द्र मोदी विकसित भारत का सपना देख रहे हैं। भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रही है। उनके नेतृत्व में यह देश तीन तलाक और धारा-370 जैसी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के पथ पर है।

समान नागरिक संहिता का विधेयक प्रधानमंत्री द्वारा देश को विकसित, संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए किए जा रहे महान यज्ञ में हमारे प्रदेश द्वारा अर्पित की गई एक आहुति मात्र है।

UCC के इस विधेयक में समान नागरिक संहिता के अंतर्गत जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित सभी कानूनों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है।

हमनें संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वर्णित हमारी अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा है, जिससे उन जनजातियों का और उनके रीति रिवाजों का संरक्षण किया जा सके।

इस संहिता में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि विवाह केवल और केवल एक पुरुष व एक महिला के मध्य ही हो सकता है। ऐसा करके हमने समाज को एक स्पष्टता देने व देश की संस्कृति को भी बचाने का काम किया है।

इस संहिता में विवाह की आयु जहां एक ओर सभी युवकों के लिए 21 वर्ष रखी गयी है, वहीं सभी युवतियों के लिए इसे 18 वर्ष निर्धारित किया गया है। ऐसा करके हम उन बच्चियों का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न रोक पाएंगे।

अब इस कानून के ज़रिए दंपत्ति में से यदि कोई भी, बिना दूसरे की सहमति से अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से विवाह विच्छेद करने और गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा।

जिस प्रकार से अभी तक जन्म व मृत्यु का पंजीकरण होता था, उसी प्रकार की प्रक्रिया को अपनाकर विवाह और विवाह विच्छेद दोनों का पंजीकरण भी किया जा सकेगा। हमारी सरकार के सरलीकरण के मंत्र के अनुरूप यह पंजीकरण एक वेब पोर्टल के माध्यम से भी किया जा सकेगा।

अब समस्त सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल वही दंपत्ति ले पाएंगे जिन्होंने विवाह का पंजीकरण करा लिया हो।पंजीकरण न होने की स्थिति में भी किसी विवाह को अवैध या अमान्य नहीं माना जाएगा।

यदि कोई व्यक्ति अपना पहला विवाह छुपाकर किसी महिला को धोखा देकर दूसरा विवाह करने का प्रयास करेगा तो उसका पता अब आसानी से लग सकेगा, ऐसा करने से हमारी माताओं-बहनों में एक सुरक्षा का भाव जागृत होगा।

पति पत्नी के विवाह विच्छेद या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा (कस्टडी) उसकी माता के पास ही रहेगी।

संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और अब तक नाजायज कहे जाने वाले बच्चों में कोई भेद नहीं किया गया है। अब सभी संतानों को समान मानते हुए संपत्ति के अधिकार में समानता दी गयी है।

समान नागरिक संहिता में लिव इन संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। एक वयस्क पुरुष जो 21 वर्ष या अधिक का हो और वयस्क महिला जो 18 वर्ष या उससे अधिक की हो, वे तभी लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे, जब वो पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में न हों और कानूनन प्रतिबंधित संबंधों की श्रेणी में न आते हों।

जब कुछ कर गुजरने की नीति होती है, जब राष्ट्र प्रथम होता है, तब ऐसे क़ानून बनते हैं।

हमारी माताएं-बहनें, बरसो से इंतजार कर रही थी, लेकिन साथियों, कहते हैं न कि सौभाग्य न सब दिन सोता है, और ऐसा कब होता है, ऐसा होता है। जब कुछ कर गुजरने की नीति होती है, जब राष्ट्र प्रथम होता है, तब ऐसे क़ानून बनते हैं।

हम सौभाग्यशाली हैं कि हम ऐसे महान नेता पीएम मोदी के पदचिन्हों पर चलने वाले लोग हैं। हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की मोदी जी की कार्य संस्कृति पर चलने वाले लोग हैं।

इस कानून में जिनका अंश मात्र भी शामिल होगा वह पुण्य का भागीदार बनेगा।

संविधान निर्माण के समय UCC के लिए कई प्रयास हुए लेकिन उस समय कि परिस्थितियों में इसे लागू करना संभव नहीं था, लेकिन संविधान निर्माताओं ने उसे नजर अंदाज न करते हुए धारा 44 में समय आने पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी हम सभी को दी।

विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय समय पर यूसीसी के पक्ष में अपनी सहमति व्यक्त कि है। हमने इस ड्राफ्ट में उन सभी फैसलों को अपने राज्य के हितानुसार शामिल किया है।

इतना लंबा कालखंड होने के बाद और इतनी सरकारें रहने के बाद भी हमारी महिलाओं के लिए हम एक उचित और सम्मानजनक व्यवस्था बनाने में विफल रहे हैं।

लेकिन अब समय आ गया है कि अब महिलाओं को बराबरी का दर्जा देकर सम्पूर्ण न्याय दिया जाए ।

इस कानून में जिनका अंश मात्र भी शामिल होगा वह पुण्य का भागीदार बनेगा।

संविधान निर्माण के समय UCC के लिए कई प्रयास हुए लेकिन उस समय कि परिस्थितियों में इसे लागू करना संभव नहीं था, लेकिन संविधान निर्माताओं ने उसे नजर अंदाज न करते हुए धारा 44 में समय आने पर इसे लागू करने की जिम्मेदारी हम सभी को दी।

विभिन्न उच्च न्यायालयों ने समय समय पर यूसीसी के पक्ष में अपनी सहमति व्यक्त कि है। हमने इस ड्राफ्ट में उन सभी फैसलों को अपने राज्य के हितानुसार शामिल किया है।

मातृशक्ति के लिए हमारी सरकार सदेव तत्पर रही है, महिला हित के लिए चल रहे इस महायज्ञ में ये समान नागरिक संहिता हमारी एक आहुति मात्र है।

महिलाओं को जो संरक्षण भारतीय संविधान ने दिया है हमने उसमें कोई भी बदलाव नहीं किए हैं बल्कि उसके अतिरिक्त कई लाभ दिए हैं।

समलैंगिक विवाह पूर्णतः प्रतिबंधित होगा। इस कानून में यह सुनिश्चित किया गया है कि महिला का विवाह केवल पुरुष से ही हो, जो हमारे देश की संस्कृति में है।

पति या पत्नी के जीवित रहते हुए किसी और से विवाह करना पूर्णतः प्रतिबंधित होगा।

सरकारी योजनाओं का लाभ तब ही मिलेगा जब आपके विवाह का पंजीकरण होगा। पंजीकरण नहीं हुआ हो तो विवाह अमान्य नहीं माना जाएगा।

जायज और नाजायज शब्द के इस्तेमाल को समाप्त किया जाए, ऐसे रिश्ते से हुए दोनों बच्चों को पिता कि पैत्रिक संपत्ति में समान अधिकार होगा।

एक वयस्क पुरुष जो 21 वर्ष या अधिक हो और वयस्क महिला जो 18 वर्ष या उससे अधिक की हो, वे तभी लिव इन रिलेशनशिप में रह सकेंगे, जब वो पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में न हों और कानूनन प्रतिबंधित संबंधों की श्रेणी में न आते हों। साथ रहने के लिए आपको बस एक सामान्य पंजीकरण करवाना अनिवार्य होगा।

यह कानून लागू होने के बाद भी राज्य की जनता से लगातार सुझाव लिया जायेगा और समय समय पर उसमें संशोधन किया जाएगा।

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