अशासकीय स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति में अड़ंगा डाल रहे हैं कुछ शिक्षा माफिया


देहरादून। शिक्षा के पैरोकारों को पीटीए के शिक्षक देवदूत जैसा लगते हैं जो वित्तीय मान्यता प्राप्त विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था संचालित कर रहे हैं लेकिन शिक्षा में खुली लूट की छूट चाहने वाले इन पीटीए शिक्षकों का विरोध करने पर अमादा हो गए हैं। अब जब सरकार इन पीटीए शिक्षकों को वर्षों से अपने विद्यालयों की व्यवस्था संभाले हुए हैं और हजार डेढ़ हजार से लेकर तीन चार हजार रुपये तक पर काम कर रहे हैं और सरकार की ओर से इन्हें सरकारी दायरे में लाने की तैयारी की जा रही है ऐसे में उन लोगों के पेट में दर्द प्रारंभ हो गया है जो नहीं चाहते हैं कि उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था चाक चौबंद हो।
देहरादून के मुख्य शिक्षा अधिकारी एसबी जोशी का कहना है कि अधिकांश शिक्षकों की योग्यता पूरी है। एलटी शिक्षकों के लिए टीईटी आवश्यक है, जबकि प्रवक्ता पद के लिए यह आवश्यक नहीं है। श्री जोशी का कहना है कि हरिद्वार के किसी संजय बालियान द्वारा उच्च स्तर पर इस संदर्भ में शिकायत की गई जिसके कारण अभी पूरी प्रक्रिया नहीं अपनाई जा पा रही है। हालांकि कई विद्यालयों द्वारा पीटीए शिक्षकों के लिए कोई रिक्ति नहीं निकाली गई जो विहित प्रक्रिया का आवश्यक अंग होती है। उन्होंने भी यह माना कि पीटीए के शिक्षकों की अर्हताएं लगभग पूरी है और उनके संदर्भ में प्रक्रिया चलाई जा सकती है।
उत्तराखंड के अशासकीय विद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी है इस बात को सरकार भी मानती है। उच्च न्यायालय नैनीताल की ओर से भी शिक्षा व्यवस्था चुस्त दुरुस्त करने के तथा अस्थायी तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति के आदेश दिए गए थे। इसी काम को वर्षों से पीटीए शिक्षक कर रहे हैं। इन शिक्षकों को अब सरकार की ओर से मानदेय देने की तैयारी प्रारंभ कर दी है।
राज्य के सैकड़ों अशासकीय विद्यालयों में 600 शिक्षकों को काम चलाऊ व्यवस्था के तहत नियुक्त किया गया है। इस व्यवस्था का दायित्व शिक्षक अभिभावक संघ यानि पीटए का होता है। कई बार पद खाली होने पर शिक्षक और अभिभावक संघ (पीटीए) भी व्यवस्था के तौर पर कुछ शिक्षकों की तैनाती करते हैं। शुरूआत में इन शिक्षकों को प्रबंधन अपने संसाधनों या छात्रों से जुटाकर मानदेय देता है। धीरे-धीरे यही शिक्षक व्यवस्था के तहत आ जाते हैं और प्रबंधन व्यवस्था के तहत इन शिक्षकों को रिक्त पद पर समायोजित कर देता है। धीरे-धीरे इन शिक्षकों को राजकीय मानदेय (10 हजार रुपये) पर समायोजित कर लिया जाता है। इसके बाद इन्हें तदर्थ नियुक्ति दे दी जाती है। कुछ समय बाद इन शिक्षकों को स्थाई कर दिया जाता है। यह सभी शिक्षक शिक्षा की अर्हताएं पूरी करते हैं और सेवा भी करते हैं। सेवा और अर्हताएं पूरी करने वाले इन शिक्षकों को उनकी सेवा के लिए सम्मानित किया जाना चाहिए लेकिन शिक्षा माफिया से जुड़े कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इन शिक्षकों को समायोजित नहीं होने देना चाहते हैं जबकि इन्हीं शिक्षको के बल पर विद्यालय का पूरा कार्य चलता है और शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ती है।
इस संदर्भ वरिष्ठ शिक्षाविद एवं गुरुनानक इंटर कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य शरण पाल खुराना मानते हैं कि जिन गुरुजनों के बल पर इन विद्यालयों का कार्य सुचारू रूप से चल रहा है उनको सरकार की ओर से विशेष रियायतें देनी चाहिए ताकि वह शिक्षा क्षेत्र में और पहले करें। श्री खुराना मानते हैं कि इन प्रबंध समितियों से जुड़े कुछ लोग चाहते हैं कि पीटीए शिक्षकों के स्थान पर नये लोगों को नियुक्त कर उनसे अच्छा-खासा अर्थ लाभ लिया जा सकता है। विद्यालय फंड अथवा भवन निर्माण के नाम पर उनसे लाखों की वसूली होती है। इसके ठीक विपरीत वर्षों से हजार-दो हजार रुपये पर कार्य करने वाले शिक्षक इतनी मोटी रकम देने में असमर्थ होते हैं। ऐसे ही लोग संचार माध्यमों का लाभ उठाकर पीटीए शिक्षकों को नियमित नहीं होने देना चाहते जो किसी भी कीमत पर उचित नहीं है।

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