देहरादून। उत्तराखंड की एक नहीं अनेक जड़ी बूटियां लोगों को स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यहां सब्जियों और फलों की एक लंबी श्रृंखला है जो लोगों को सवाद के साथ साथ स्वास्थ्य भी देती है। ऐसी ही सब्जियों में शामिल है पौष्टिकता से भरपूर सब्जी लिंगड़ा। लिंगड़ा गाड़-गधेरों के आस-पास उगता है। विदेशों में भी इसकी काफी मांग है। इसे सब्जी के साथ-साथ अचार और सलाद के रूप में भी खाया जाता है। यह लिंगड़ा गाड़ -गधेरों के किनारे उगने वाली फर्न है। विश्व के कई देशों में लिंगड़ा की खेती वैज्ञानिक एवं व्यवसायिक रूप से भी की जाती है। लिंगड़ा उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि चीन, जापान आदि कई देशों में पाया जाता है।
दुनियाभर में लिगड़ा की लगभग 400 प्रजातियां पाई जाती हैं। लिंगड़ा का वैज्ञानिक नाम डिप्लाजियम एसकुलेंटम है और एथााइरिएसी फैमिली से संबधित है। विभिन्न जगह इसे अलग-अगल नामों से जाना जाता है। उत्तरा खंड में इसे लिंगड़ा तो सिक्किम में इसे निगरू, हिमाचल प्रदेश में लिंगरी नाम से जाना जाता है। यह सामान्यत: नमी वाली जगह पर मार्च से जुलाई के मध्य पाया जाता है। यह समुद्रतल से 1900 मीटर से 2900 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। लिंगेडे का उपयोग सामान्यत: सब्जी बनाने में ही किया जाता है लेकिन अन्य देशों में इसकी सब्जी बनाने के साथ-साथ अचार और सलाद के रूप में भी इसका उपयोग किया जाता है। लिंगड़े में उपस्थित मुख्य औषधीय तत्वों और प्रचुर मात्रा में मिनरल पाये जाने के कारण यह औषधीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। लिंगड़े में कैल्शियम, पोटेशियम और आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें प्रोटीन 54 ग्राम, लिपिड 0.34 ग्राम, कार्बोहाइड्रेड 5. 45, फाइबर 4.45 ग्राम पाया जाता है। इसके अलावा विटामीन सी-23.59 एमजी, विटामीन बी 4. 65, फेनोलिक 2.39 एमजी पाया जाता है। इसमें मिलरल एफई 38.20 एमजी, जेडआईएन 4.30 एमजी, सीयू 1.70 एमजी, एमएन 21.11, एनए 29.0, के 74.46, सीए 52.66, एमजी 15.30 एमजी पाया जाता है। उत्तराखंड में इसकी व्यवसायिक खेती किए जाने की जरूरत है।