शैली श्रीवास्तव- आज कल पाॅलिथिन वैन कों लेकर अभियान चल रहा है क्योंकि उसे काफी हद तक पर्यावरण कों नुकसान हो रहा है लेकिंन क्या आप जानते है कि वाइप्स से होने वाली दिक्कत सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि पर्यावरण के लिए भी एक खतरा है। प्लास्टिक के बने ये वाइप्स बायो-डिग्रेडेबल नहीं होते और उन्हें पूरी तरह नष्ट होने में लगभग 500 साल लग जाते हैं। वहीं ईको-फ्रेंडली वाइप्स पौधों के फाइबर से बने होते हैं और ये बहुत ही मुलायम होते हैं। साथ ही पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाते।
अगर और देशों की बात करें तो वहां प्लास्टिक वाइप्स को बैन करने की मुहिम छिड़ी हुई है क्योंकि वहां नाले जाम होने का मुख्य कारण ये वाइप्स हैं। आज के परिवेश में वाइप्स का इस्तेमाल जहां एक आम बात हो गई है वहीं वाइप्स से होने वाली परेशानियां भी बढ़ी हैं। हैल्थहंट डॉट इन की संस्थान के अनुसार बच्चों की त्वचा बहुत पतली और कोमल होती है और कोई भी तरल पदार्थ उसके आर पार हो जाता है। इसलिए वाइप्स इस्तेमाल करने से पहले बच्चे की त्वचा पर किसी जेली या क्रीम से मालिश करने से उसकी परत वाइप्स से होने वाले रैशेस से बचाती है.बता दें, बेबी केयर मार्केट 17 फीसदी की दर से बढ़ रहा है, इसका बाजार 2014 में जहां 14 अरब डॉलर का था, वहीं 2019 में यह 31 अरब डॉलर के पार होने की संभावना है। मदर स्पर्श की संस्थापक और ब्रांड स्ट्रेटेजी की प्रमुख रिशु गांधी ने कहा, आम या नामी वाइप्स ज्यादातर प्लास्टिक से बनते हैं जिनमें रसायनों की मात्रा भी बच्चों की त्वचा के अनुसार अधिक होती है। जब इन वाइप्स का इस्तेमाल ज्यादा होता है तो त्वचा में खुजली बढ़ जाती है और त्वचा संबंधी अन्य समस्याएं हो जाती हैं. ये खासकर तब बढ़ती हैं जब रसायन मिश्रित वाइप्स से हम बच्चे को पोंछ कर धूप में रख देते हैं तो ये सारे केमिकल्स सूर्य की रोशनी के संपर्क में आकर प्रतिक्रिया कर बच्चों को तकलीफ पहुंचाते हैं।