दायित्वों कों लेकर जल्द दूर हो सकती है भाजपा कार्यकत्ताओं की बेचैनी……

देहरादून {शैली श्रीवास्तव}- विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ सत्ता में पहुंची भाजपा को अब इसके साइड इफेक्ट का सामना करना पड़ सकता है। दायित्वों, यानी विभिन्न निगम, बोर्ड, आयोगों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के मंत्री पद के दर्जे के पदों के तलबगारों की पार्टी में खासी लंबी कतार नजर आ रही है। वहीं दायित्वों को लेकर भाजपा नेताओं की बैचैनी अब जल्द दूर हो सकती है कहा जा रहा है कि नगर निकायों के चुनाव से पहले भजपा में दायित्वों का बटवारा हो जायेगा, लेकिन सरकार अधिकतम लगभग डेढ़ सौ नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी दे सकती है, लेकिन दावेदारों की संख्या ढाई हजार तक जा पहुंची है। ऐसे में तय है कि निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए भारी मशक्कत से गुजरना भी पड़ेगा।
हां इतना जरूर है कि नेताओं और कार्यकर्ताओं के दबाव में दायित्व बटवारे की कवायद पार्टी ने आरंभ कर दी है। पहले चरण में लगभग 30 नामों को दायित्वों के लिए चुना गया है। पिछले हफ्ते नई दिल्ली में केंद्रीय नेताओं साथ बैठक में इन पर मुहर भी लगा दी गई। दिलचस्प बात यह कि भाजपा सरकार और संगठन शुरुआत में जरूरी पदों पर ही दायित्व सौंपने की बात कह रहा है, लेकिन इसके उलट अब तक लगभग ढाई हजार पार्टी नेता व कार्यकर्ता इन पदों के लिए दावा कर चुके हैं। सरकार के समक्ष दिक्कत यह है कि वह इतनी संख्या में कैसे अपने कार्यकर्ताओं को सरकार में हिस्सेदारी दें। वैसे भी अब निकाय चुनाव निकट हैं और लोकसभा चुनाव के लिए भी एक साल से कम वक्त बचा है। ऐसी स्थिति में सरकार और पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में दायित्व बटवारे को लेकर किसी तरह के रोष पनपने का जोखिम मोल नहीं ले सकती।

 

 

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