उत्तराखंड के पहाड़ों से लगातार पलायन हो रहा है 2 जून की रोटी की आमद जब गांव में मुश्किल हो रही है तो लोग पुश्तैनी जमीन छोड़ मैदानों की शरण ले रहे हैं. सरकार को चिंता हुई तो पलायन आयोग बना डाला आयोग बना तो बजट भी आवंटित हो गया. अब सवाल यह है कि कैसे बजट खर्च हो कैसे पलायन आयोग अपना काम दिखाएं ग्रामीण विकास और पलायन कमीशन ने अजब नुस्खा इजाद कर दिया है आयोग को जरूरत है ऐसे उच्च शिक्षित युवाओं की जिन्होंने देश विदेश के नामी गिरामी विश्वविद्यालयों से तमिल हासिल की है. ताकि वह उत्तराखंड आकर पलायन आयोग को पलायन रोकने के उपाय सुझा सकें पलायन आयोग ने बकायदा अंग्रेजी भाषा में विज्ञापन जारी कर आईआईटी आईआईएम दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स JNU जैसे महंगे विश्वविद्यालय के छात्रों को ही आवेदन का पात्र मानकर सेवाएं देने के लिए आमंत्रित किया है. पलायन आयोग इसके लिए बकायदा रु० 40,000 प्रतिमाह भी देगा. अजीब पहेली यह है कि धन्नासेठों की संतानों के इन संस्थानों में दाखिले पर ही ऊंचे रसूख और कुबेर पोटली लगती हो और तालीम में लाखों का खर्च आता हो उनसे पलायन रोकने के लिए बना आयोग गांव में 2 जून की रोटी का नुस्खा कैसे सीखेगा ? जब धनकुबेरों की संतान को गढ़वाली कुमाऊनी और जौनसारी भाषा सीखने के बाद पहाड़ में चढ़ना होगा और वहां की भौगोलिक परिस्थितियों को सीखने में जो वक्त लगेगा उससे तो बेहतर यही है कि पलायन आयोग जैसा ड्रामा क्यों किया जा रहा है. बड़ा सवाल यह है कि सरकार की सोच पर अफसरशाही पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।