महाभारत काल से खेला जाता है “उत्तराखंड का गेंद का मेला”, वैभवशाली है इसका इतिहास!

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सांस्कृतिक पर्वों की दृष्टि से उत्तराखण्ड वैभवशाली प्रदेश है। यहां समय समय पर कई स्थानीय, क्षेत्रीय, प्रान्तीय मेलों का आयोजन किया जाता है। यह सभी मेले उत्तराखण्ड के वैभवशाली गरिमामयी पौराणिक संदर्भों से जुड़े हैं।
जनपद पौड़ी गढ़वाल में कई स्थानीय मेलों का आयोजन समय समय पर होता रहता है। ऐसे ही मकर संक्रान्ति के अवसर पर आयोजित होता है “गेंद का मेला” जिसे कि स्थानीय भाषा में “गिन्दी कौथीग” के नाम से जाना जाता है।

यह मेला अपने आप में अति विशिष्ट है। पौड़ी गढ़वाल में गेंद का मेला कई स्थानों पर आयोजित किया जाता है परन्तु थलनदी और डाडामन्डी दोनों स्थानों में आयोजित होने वाले मेले अति प्रसिद्ध हैं। इन दोनों मेलों को देखने के लिये लोग दूर दूर से आते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस मेले का संबन्ध महाभारत काल से है। कहा जाता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय महाबगढ़ी में व्यतीत किया था। इसी दौरान कौरव सेना उन्हे ढूंढती हुई यहां पहुंच गई और उन्होने पाण्डवों को थलनदी के किनारे देख लिया। फलस्वरूप थलनदी के किनारे पाण्डवों और कौरवों में घमासान मल्लयुद्ध हुआ। संभवतया आज भी यह मेला उसी महान पौराणिक घटना की याद में मनाया जाता है।

गेंद का मेला एक मल्लयुद्ध की तरह दो क्षेत्रों/पट्टियों के खिलाड़ियों बीच आयोजित किया जाता है। इस खेल का कोई नियम नहीं होता है और ना ही खिलाड़ियों की संख्या से लेकर खेल की अवधि किसी की कोई सीमा निर्धारित नहीं होती। मेले का मुख्य आकर्षण एक चमड़े की गेंद होती है जिसके चारों तरफ एक एक कंगन मजबूती से लगे होते हैं। जनवरी की कंपकंपाती ठण्ड में यह खेल खुले खेतों में खेला जाता है।

सुबह से ही दोनों पक्षों के लोग मन्दिर में ईश्वर से विजय प्राप्ति हेतु विधिवत पूजा अर्चना करते हैं। अपराह्न के समय दोनों क्षेत्रों के लोग निर्धारित स्थान पर ढोल-दमाऊ तथा नगाड़े बजाते हुये अपने अपने क्षेत्र की ध्वजा लिये एकत्र हो जाते हैं। खेल शुरू होने से पूर्व पाण्डव नृत्य का आयोजन किया जाता है। जिस पक्ष के लोग गेंद बनवा कर लाये होते हैं वे लोग गेंद को हवा में उछालते हैं और यहीं से शुरू हो जाती है गेंद को लपककर अपने क्षेत्र की सीमा में फेंकने की जद्दोजहद।

दोनों पक्षों के लोग गुत्थमगुत्था होकर गेंद की छीनझपटी शुरू कर देते हैं। सबका एक ही ध्यान केन्द्रित होता है गेंद को छीन कर अपने क्षेत्र में फेंक देना। काफी लम्बे समय तक यह संघर्ष चलता रहता है। यह खेल इतना रोमांचक होता है कि खेलने वालों के साथ साथ देखने वाले भी पूर्ण उत्साहित रहते हैं। बच्चे, नौजवान यहां तक कि बूढ़े भी नारे लगा-लगा कर अपने क्षेत्र के खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ाते रहते हैं। लम्बे संघर्ष, छीना-झपटी, धक्का-मुक्की तथा तना-तनी के बाद किसी एक क्षेत्र के खिलाड़ी जब गेंद को अपने क्षेत्र की तरफ फेंक देते हैं तो उस क्षेत्र के खिलाड़ियों को विजय घोषित कर दिया जाता है। जीतने वाली टीम नाचती गाते हुये गेंद को अपने साथ ले जाती है।

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