दलालो के हाथो में आरटीओ की चाबी, ज्वाइंट मजिस्ट्रेट भी रह गई दंग !

बड़ी खबर : सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने की लाख कोशिशों करे, लेकिन भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी हो चुकी है कि हमारा सरकारी तंत्र सुधरने वाला नहीं है। इसका ताजा उदाहरण रुड़की शहर में देखने को मिला, जब रूडकी की ज्वाइंट मजिस्ट्रेट नितिका खंडेलवाल आम नागरिक बनकर अकेले ही पैदल लाइसेंस बनाने दिल्ली रोड स्थित एआरटीओ कार्यालय जा पहुंचीं। वहां उन्हें एआरटीओ कार्यालय दलालों के सहारे चलता मिला। लाइसेंस बनाने से लेकर नंबर प्लेट तक के काम के लिए बिना दलाल के फार्म भी नहीं मिल पाया। एआरटीओ कार्यालय का पूरा तंत्र दलालों के हाथ से ही संचालित होता मिला। यहां तक कि सरकारी मोहर के रूप में प्रयोग होने वाले होलोग्राम भी दलाल के खोखे से मिले। ज्वाइंट मजिस्ट्रेट नितिका खंडेलवाल ने एआरटीओ को कड़ी फटकार लगाकर मामले की रिपोर्ट डीएम को भेजने की बात कही है।

ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को देख आरटीओ की हुई बोलती बंदनितिका खंडेलवाल सुबह करीब 11 बजे दिल्ली रोड की तरफ चल दीं। डबल फाटक के पास उन्होंने सुरक्षा कर्मी को गाड़ी में ही रहने की हिदायत दी और फिर वहां से पैदल अकेले ही एआरटीओ कार्यालय जा पहुंचीं। वहां उन्होंने सीधे कार्यालय में प्रवेश किया। खिड़की पर मौजूद कर्मचारी से लाइसेंस बनाने के लिए फार्म मांगा। कर्मचारी ने उन्हें बाहर दलाल के पास से फार्म लेने का इशारा कर दिया। वे दलाल के पास पहुंचीं। दलाल ने लाइसेंस बनाने का खर्चा 2400 रुपये बताते हुए दस रुपये लेकर फार्म थमा दिया। लेकिन जेएम ने खुद ही लाइसेंस बनाने की बात कही। इसी दौरान एआरटीओ शैलेश तिवारी वहां पहुंच गए। उन्होंने ज्वाइंट मजिस्ट्रेट को पहचान लिया और कार्यालय में चलने का निवेदन किया। जेएम खंडेलवाल ने उन्हें एआरटीओ कार्यालय में दलालों की स्थिति दिखाई फिर फार्म देने से इनकार करने वाले कर्मचारी के पास चल दीं। लेकिन वहां से कर्मचारी गायब हो चुका था। फिर वे बाहर दलाल के पास चलने लगीं। लेकिन मामले को देखते ही दलाल भी अपने खोखे में ताला लगाकर भाग निकला।

जेएम ने ताले को तुड़वाकर देखा तो उसमें लाइसेंस व अन्य कामों से आए लोगों से लिये गए रुपये और बकाश शेष आदि की पूरी जानकारी देती खाताबही मिली। इसके अलावा एक दर्जन से अधिक बने हुए लाइसेंस मिले। खोखे के अंदर ही सरकारी मोहर के रूप में प्रयोग किए जाने वाले होलोग्राम भी मिले। इन्हें लगाकर ही लाइसेंस जारी किया जाता है। इसके अलावा वहां दर्जनों अधूरे फार्म व प्रिंटर भी मिला। उन्होंने इन्हें कब्जे में ले लिया। साथ ही एआरटीओ शैलेश तिवारी को कड़ी फटकार लगाई।
सरकारी होलोग्राम दलालों के पास क्यों
सरकारी होलोग्राम दलाल के खोखे की दराज में मिलने पर जेएम का पारा चढ़ गया। उन्होंने एआरटीओ शैलेश तिवारी से दलालों के पास सरकारी होलोग्राम पहुंचने का कारण पूछा। लेकिन इसपर शैलेश तिवारी कोई जवाब नहीं दे पाए। खाताबही बताएगी, किससे कितना रुपया वसूला। एआरटीओ कार्यालय के दलाल के यहां से मिली खाताबही में कई लोगों से लिये गए रुपये, काम और बकाश शेष की जानकारी लिखी हुई थी। हर काम के लिए अलग अलग लोगों से अलग अलग रकम लिखी हुई थी। फिलहाल जेएम ने इस बही को भी अपने कब्जे में ले लिया है। माना जा रहा है कि इस बही की जांच से ही अधिकारियों को जा रहे कमीशन का भी खुलासा हो सकता है।
मजबूत गठजोड़ के चलते नहीं मिलती दलालों से निजात
दलालों के जंजाल से एआरटीओ कार्यालय को निजात नहीं मिल रही है। इसकी अहम वजह एआरटीओ कार्यालय में बैठे अफसर, कर्मचारी और दलालों का मजबूत गठजोड़ है। ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने से लेकर नंबर प्लेट लगाने तक एआरटीओ कार्यालय का कोई भी काम बगैर दलाल के नहीं होता है। कार्यालय में बैठे कर्मचारी मौन रहकर न तो फार्म देंगे और न ही जानकारी देंगे। जबकि दलाल आगे बढ़कर आने वाले से उसका काम पूछेंगे। हालात तो इतने खराब हैं कि कई बार कर्मचारी की जगह दलाल ही कार्यालय में कर्मचारी की सीट पर बैठे देखे जाते हैं।
ऐसे बनता है ड्राइविंग लाइसेंस
डीएल बनवाने के लिए आवेदन फार्म के साथ तीन फोटो, जन्मतिथि और पते का प्रमाण पत्र सहित 350 रुपये की फीस जमा करके उसके साथ डाक टिकट लगा और अपना पता लिखा एक लिफाफा लगाना होता है। आवेदन तिथि के 15 दिन बाद लर्निंग लाइसेंस आवेदक के घर पहुंच जाता है। लर्निंग के एक महीने के बाद परमानेंट डीएल के लिए आवेदन करना होता है। इसके लिए आवेदनकर्ता को फार्म, दो फोटो और लर्निंग डीएल के साथ एक हजार रुपये फीस चुकानी होती है, जिसके करीब 15-20 दिन बाद लाइसेंस सीधे घर पहुंचता है। दलालों की फीस एक हजार रुपये दलाल और विभागीय कर्मियों व अधिकारियों का गठजोड़ इतना मजबूत है कि उनके आगे आला अधिकारी भी खामोश हैं। साठगांठ के चलते दलाल लर्निंग लाइसेंस के एक हजार और परमानेंट लाइसेंस बनवाने के लिए खुलेआम दो से ढाई हजार रुपये तक वसूले रहे हैं। आवेदक अगर अधिकारी से मिलकर सीधे लाइसेंस बनवाना भी चाहे तो दलाल कोई काम नहीं होने देते। आवेदन फार्म से लेकर फीस जमा करने और टेस्ट में फेल हो जाने के डर से आवेदन भी दलालों के फेर में फंस जाते हैं।
नाक के नीचे चल रहा दलालों का धंधा, अधिकारी मौन 
एआरटीओ कार्यालय में अधिकारी सुबह दफ्तर आते हैं। दोपहर में लंच व अन्य जरूरी कार्य के लिए जाते भी हैं। इसके अलावा कई बार दफ्तर के चक्कर लगाते हैं। हर बार उन्हें इन्हीं दलालों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। यह दलाल निचले तल पर मौजूद सभी कार्यालयों में घूमते हैं। साथ ही कर्मचारियों के साथ खासा मेलजोल रखते हैं। लेकिन अधिकारी भी दलालों का कहीं न कहीं मौन समर्थन करते दिखाई देते हैं।
सिफारिशों के लिए घनघनाने लगे फोन
ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के लौटने के बाद एआरटीओ कार्यालय के अधिकारियो को बचाने के लिए सिफारिसियों के फोन घनघनाने लगे। तहसील परिसर में मौजूद अपने मिलने वालों के साथ ही सफेदपोशों को भी फोन पहुंचने लगे।

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