पहाड़ो से पलायन रोकने में अहम भूमिका निभा रहे है अर्जुन सिंह पंवार, जाने कैसे!

कुलदीप राणा, रुद्रप्रयाग: अगर मन में कुछ कर गुजरने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है। मेहनत का फल देर से ही सही, मिलता जरूर है। उक्ति पंक्तियां लोक निर्माण विभाग रुद्रप्रयाग में सहायक अभियंता के पद पर तैनात अर्जुन सिंह पंवार पर सटीक बैठती हैं। वे अपनी नौकरी के साथ-साथ पिछले 27 वर्षों से हाड़तोड़ मेहनत कर बंजर और पथरीली जमीन पर मेहनत का बागवान तैयार कर रहे हैं, जो अब मेहनत का फल देने लगा है।
रुद्रप्रयाग लोनिवि में सहायक अभियंता अर्जुन पंवार 1990 के दशक से सरकारी नौकरी के साथ-साथ बागवानी के कार्य में जुटे हुए हैं। खेती से मुँह मोड़ कर रोजगार की तलाश में बाहरी राज्यों में भारी संख्या में पलायन कर रहे पहाड़ के लोगों से पंवार बड़े आहत हैं। पंवार का कहना हैं कि पहाड़ में वन संपदा, जल संपदा और फल सम्पदा का इतना बड़ा भण्डार होने के बावजूद भी लोग इसे पहचान नहीं रहे हैं। सब कुछ सरकारों के भरोसे रहने की प्रवृत्ति ने यहां के लोगों को नाकारा बना दिया. स्थिति को पंवार ने धरातल पर काम करने का मन बनाया और श्रीनगर से 9 कि0मी0 दूर अपने पैतृक गाँव गहड़ में 1 हैक्टेयर नाप भूमि पर 1990 में लीची, आँवला, माल्टा, मौसमी, अनार, आम, पपीता आदि फलदार पौधों का रोपण किया। बंजर और पथरीली जमीन होने के बावजूद भी वे समय-समय पर नन्हें पौधों की निराई-गुड़ाई के साथ ही खाद-पानी देते रहे, तो उस बेजान भूमि में रोपे गये पौधों में जान आने लगी। पौधों में नई-नई कोपलियां फूटती रही तो पंवार के हौसलों में आशा की किरण जागने लगी। उसके बाद यह सिलसिला निरंतर आज जारी है। आज पूरे 27 वर्ष बाद उनके बगीचे में 12 सौ से अधिक फलदार पेड़ ऐसे तनकर खड़े हैं मानों पहाड़ से रोजगार के लिए पलायन कर रहे युवाओं को कह रहे हो कि लौट आओ अपने पहाड़ में! यहां बहुत बड़ा खजाना है। अर्जुन पंवार इस बगीचे से सालाना करीब 3 से 4 लाख रुपये तक कमाते हैं। यहीं नहीं पंवार आधा दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। इन दिनों पंवार के बगीचे से माल्टे का उत्पाद श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, देहरादून के शहरों में नियात हो रहा है। जबकि लींची के सीजन में सबसे अधिक पैदावार लींची की होती है।

 

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