पुरे देश की तरह उत्तराखंड के मैदानी जनपदों में भी छठ पर्व को धूमधाम से मनाया गया, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी तक चलने वाला यह चार दिन का पर्व खाए नहाय के साथ शुरू होता है। उत्तराखंड में भी पिछले कुछ सालो से छठ की छटा में राजनीती रंग घुलने लगा है। पहले जरुरत के हिसाब से प्रदेश के पहाड़ी जिलों को छोड़ कर मैदानी जनपदों में ही छठ पूजा के अवसर पर अवकाश लागु किया जाता था लेकिन मौजूदा सरकार ने जल्दबाजी में इस अवकाश को पुरे प्रदेश में सावर्जनिक अवकाश घोषित कर दिया। सरकार के इस फैसले पर सोशल मिडिया में तरह-तरह की चर्चाए हो रही है।
भारत में सूर्योपासना के लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। छठ पूजा को देश के कई हिस्सों में बिहार और उत्तर प्रदेश से आये लोगों की पहचान के रूप में देखा जाता रहा है। यही कारण है कि उत्तराखंड में भी पिछले कई सालो से छठ का त्यौहार धूमधाम से मनाया जा रहा है
राज्य गठन के बाद रोजगार के लिए तलाश में पूर्वांचल से आए हजारो लोग उत्तराखंड में आजीविका चला रहे है। तो कुछ लोग यूपी, बिहार से ट्रांसफर होकर उत्तराखंड में आए सरकारी महकमे में नौकरी कर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे है। जोकि एक सामान्य प्रक्रिया है। लिहाजा डेढ़ दशकों में पूर्वांचल के लोगो के बढ़ते जनाधार पर राजनितिक पार्टियों की नजर पड़ने लगी है। प्रदेश के बड़े जिले देहरादून, हरिद्धार, उधमसिंहनगर और नैनीताल जिलों में वोट बैंक की चाह रखने वाले जनप्रतिनिधियों ने इन्हे रिझाने का भरपूर प्रयास किया। पिछली सरकारों ने वोट बैंक की चाह में पूर्वांचल से रोजगार की खोज में आई बड़ी आबादी को अपने पक्ष में करने के लिए छठ त्यौहार में अवकाश देने का राजनितिक पैंतरा इस्तेमाल किया। यह पैंतरा हर बार इतनी सफाई और इस तरीके से चला कि पूर्वांचल के लोगो को लगे कि सरकार ने उन पर अहसान किया है। लेकिन छठ के पर्व के अवकाश को जरुरत के बजाय राजनितिक लाभ के लिए सार्वजनिक अवकाश में बदल जाने से उत्तराखंड के लोग अपने स्थानीय त्योहारों पर भी अवकाश की मांग करने लगे है।
सोशल मिडिया में स्थानीय लोगो ने हरेला फूलदेई, उत्तरायणी और एकास बग्वाल जैसे त्योहारों पर भी सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग तेज कर दी है। भले ही वर्तमान सरकार सबके हितो को ध्यान रखते हुए निर्णय ले रही हो , लेकिन कुछ कटरपंथी लोग सोशल मिडिया के जरिए इसको राजनितिक रंग देने में लगे हुए है।