नवरात्र शुरू हो चुके है कहा जाता की इन नौ दिनों लोग नौ देवियो की पूजा-पाठ कर भगवती माँ को प्रसन्न करने का प्रयास करते है। आज हम आपको माँ दुर्गा के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहाँ खुद अकबर ने सोने का छत्र चढ़ाया था. जानिए माँ ज्वाला देवी के बारे में कुछ खास बाते……….
मूर्ति नहीं बल्कि यँहा ज्वाला की होती है पूजा
ज्वालामुखी मंदिर, कांगड़ा घाटी से 30 कि॰मी॰ दक्षिण में हिमाचल प्रदेश में स्थित है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठो में शामिल है। ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। इस मंदिर का सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि इसमे किसी मूर्ति की नहीं बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है ज्वाला देवी मंदिर में सदियों से प्राकृतिक ज्वालाएं जल रही हैं. संख्या में कुल 9 ज्वालाएं, मां दुर्गा के 9 स्वरूपों का प्रतीक हैं. इनका रहस्य जानने के लिए पिछले कई साल से भू-वैज्ञानिक जुटे हुए हैं. लेकिन 9 किमी खुदाई करने के बाद भी उन्हें आज तक वह जगह ही नहीं मिली जहां से प्राकृतिक गैस निकलती हो.
साल 1835 में हुआ पुनर्निर्माण
सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण राजा भूमि चंद ने कराया था यहां पर पृथ्वी के गर्भ निकलती इन ज्वालाओं पर ही मंदिर बना दिया गया हैं. इन 9 ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से भी पूजा जाता है.
अकबर ने भी मां के सम्मान में चढ़ाया था सोने का छत्र
ज्वालामुखी मंदिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४२ से १६०५ के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे है। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नही है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें। यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन मे अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।