नई दिल्ली; बड़ी बात यह नही है कि जब एक बच्चा जन्म लेता है तो वो रोता है, बड़ी बात तो यह है कि जब एक व्यक्ति मरता है तो पूरी दुनिया उसके लिए रोए, मानों यह कथन अर्जन सिंह के लिए ही बना हो। जैसा कि हम सब जानते हैं कि इंडियन एयर फोर्स के मार्शल अर्जन सिंह का दिल का दौरा पड़ने से बाते रोज निधन हो गया है। 98 वर्षीय इस ऑफिसर के जुनून और प्रतिबद्धता की मिसालें उनकी मृत्यु के बाद भी दी जाती रहेंगी।
अर्जन सिंह का जन्म पंजाब के लयालपुर (अब पाकिस्तान का फैसलाबाद) में 15 अप्रैल 1919 में हुआ। ज्ञात हो कि औलख फील्ड मार्शल के बराबर फाइव स्टार रैंक हासिल करने वाले इंडियन एयर फोर्स के एकलौते ऑफिसर थे। इंडियन आर्मी में उनके अलावा 2 और ऑफिसर्स को फाइव स्टार रैंक मिली थी- फील्ड मार्शल के0एम करियप्पा और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ। बता दें कि जून 2008 में सैम मानेकशॉ के निधन के बाद अर्जन सिंह भारतीय सेना के फाइव स्टार रैंक वाले एकमात्र जीवित ऑफिसर थे। अब उनका भी निधन हो चुका है।

अर्जन ने 19 साल की अवस्था में रॉयल एयर फोर्स कॉलेज जॉइन किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बर्मा में बतौर पायलट और कमांडर अद्भुत साहस का परिचय दिया। अर्जन सिंह की कोशिशों के चलते ही ब्रिटिश भारतीय सेना ने इंफाल पर कब्जा किया जिसके बाद उन्हें डीएफसी की उपाधि से नवाजा गया था। 1950 में भारत के गणराज्य बनने के बाद सिंह को ऑपरेशनल ग्रुप का कमांडर बनाया गया। यह ग्रुप भारत में सभी तरह के ऑपरेशन के लिए जिम्मेदार होता है।
पद्म विभूषण से सम्मानित एयर फोर्स मार्शल अर्जन सिंह 1 अगस्त 1964 से 15 जुलाई 1969 तक चीफ ऑफ एयर स्टाफ रहे। इसी दौरान 1965 की लड़ाई में अभूतपूर्व साहस के प्रदर्शन के चलते उन्हें वायु सेनाध्यक्ष के पद से पद्दोन्नत करके एयरचीफ मार्शल बनाया गया। उनके नेतृत्व में इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर घुसकर कई एयरफील्ड्स तबाह कर डाले थे। एयर फोर्स प्रमुख के तौर पर लगातार 5 साल अपनी सेवाएं देने वाले अर्जन सिंह एकमात्र चीफ ऑफ एयर स्टाफ थे। बता दें कि 1971 में अर्जन सिंह को स्विटजरलैंड में भारत का राजदूत भी नियुक्त किया गया था। इसके अलावा उन्हें वेटिकन और केन्या में भी नियुक्त किया गया था।
2 साल पहले अर्जन सिंह पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के पार्थिव शरीर को पालम एयरपोर्ट पर श्रद्धांजलि देने तो पहुंचे ही लेकिन बड़ी बात यह है कि उस वक्त कलाम को सलामी देने के लिए वह अपनी वीलचेयर से उठ खड़े हुए थे। उस वक्त उनकी वह तस्वीर काफी वायरल हुई थी। पिछले साल अप्रैल में उनके जन्मदिन के मौके पर पश्चिम बंगाल के पनागढ़ एयरबेस का नाम बदलकर उनके नाम पर रख दिया गया। यह पहली बार था जब एक जीवित ऑफिसर के नाम पर किसी सैन्य प्रतिष्ठान का नाम रखा गया हो।