चार धाम यात्रा शुरू होने वाली है, मंत्री संत्री सभी अपने अपने काम गिनवा रहे है, आये दिन आदेश चलते रहते है…और दावा किया जाता है कि प्रशासन की तरफ से चार धाम यात्रा की तैयारी पूरी कर ली गयी है, लेकिन क्या उत्तराखंड को देवभूमि चार धाम के कारण ही कहाँ जाता है? क्या प्रशासन सिर्फ चार धाम यात्रा के बारे में ही चिंतित है, उत्तराखंड राज्य में जनता आस्था के आधार पर जीवन जीती है, यहाँ के हर मंदिर में श्रद्धालु अपार श्रदा के साथ आते है फिर चाहे उनको अपनी जान जोखिम में डाल कर ही क्यों न आना पड़े.
आपको बता दे …. कि चमोली जिले की उर्गम घाटी में स्थित पांचवें केदार कल्पेश्वर धाम को जोड़ने वाले पुल का निर्माण सरकार चार साल में नहीं कर पाई है। मजबूरी में स्थानीय लोग तो कच्चा पुल बनाकर कल्प गंगा को पार कर कल्पेश्वर धाम में पूजा अर्चना कर रहे हैं। मगर यात्रकाल के दौरान अगर यात्री इस धाम में आते हैं तो उन्हें जान जोखिम में डालकर मंदिर तक पहुँचने को मजबूर है।
वर्ष 2013 में आई आपदा में कल्पेश्वर धाम का झूला पुल बह गया था। उस साल यात्री पंचम केदार कल्पेश्वर भगवान के दर्शन करने से वंचित रह गए थे।
स्थानीय लोगों ने खुद ही झूला पुल की रस्सीयों से ही नदी को पार कर पूजा अर्चना की थी। उसके बाद प्रशासन की तरफ से कुछ न होता देख ग्रामीणों ने लकड़ियों का कच्चा पुल बना दिया लेकिन कल्पगंगा का बहाव तेज है जिससे कच्चा लकड़ी का पुल बह जाता है। लेकिन ग्रामीणों का हौसला देखिये वह हर साल खुद ही दूसरा कच्चा पुल बनाते हैं। यह सिलसिला प्रत्येक वर्ष चलता रहता है।
हम आशा करते है कि प्रशासन की नींद जल्द टूटेगी और यात्रियों को जान का जोखिम नहीं उठाना पड़ेगा… और हां गाँव वालो के हौसले को vision२०२० का सलाम !