अभी मार्च का महिना शुरू ही हुआ था कि पहाड़ों के जंगल सुलगने लगे। ग्लोबल वार्मिंग का कहर और कितना बढ़ेगा ये अंदाजा लगाना मुश्किल है पर पहाड़ों की वन संपदा बचानें के लिए कोई कदम उठाना तो मुश्किल नही। क्योकिं “वन” हैं तभी तो “हम” हैं, फिर भी जंगलों में लगी आग हमारें राजनेताओं के मन की बेफ्रिकी को नही जला पा रही है।
बीते रोज अल्मोड़ा के पास बजोल गांव के पास वनों की आग गांव तक पहुंच गई। और त्राही मचा दी। आग इतनी भयानक थी कि 11 गौशालाएं आग की चपेट में आ गई। खबर तो ये भी कि एक महिला भी झुलसी है।
पहाड़ अभी बंसत उत्सव में खोया ही था कि बहार को नष्ट करने के लिए ग्लोबल वार्मिंग ने दस्तक दे दी। अब वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी। ये आग उत्तराखंड के पहाड़ों के लिए तो खतरा है ही पर आस पास के राज्य और मैदानी इलाके भी इस तपिश से अछूते नही रहेंगे। पहाड़ सुलगे तो असर मैदानों में भी दिखेगा। पर सरकार और वन विभाग शायद अब भी किसी बड़ी घटना के इंतजार में आंखे मूदें बैठा है।
अभी से वनों में आग लगाना भविष्य में बड़ी मुसीबत आने के संकेत दे रहा है। पिछली बार की तरह इस बार भी वन विभाग और सरकार की तरफ से कोई उपाय अभी तक सुझाए गए है। याद रखिए प्रकृति ही जीवन है यदि प्रकृति नष्ट हो गई तो जीवन की कल्पना भी भूल जाइए। प्रकृति में लगी आग हम सब को खत्म कर सकती है। इसलिए सर्तक हो जाइए और पहाड़ों को बचाइए।