आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती मनाई जा रही है। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द के कारण ही पहुंचा। आज उनकी जयंती के मौके पर हम आपको बता रहे हैं ईश्वर,धर्म और कर्म को लेकर उनके विचार। उनके प्रेरणादायक बातों को जो आज भी प्रासंगिक है …
- मैं उस ईश्वर का सेवक हूं जिसे नादान लोग मनुष्य कहते हैं।
- सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा। वह सत्य ही ईश्वर है।
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
- जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रूपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा, उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूं, हर वह चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी और मैं स्वतंत्र हो गया।
- सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो।
- अगर आप ईश्वर को अपने भीतर और दूसरे वन्य जीवों में नहीं देख पाते, तो आप ईश्वर को कहीं नहीं पा सकते।
- कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है. अगर कोई पाप है, तो वो यह कहना है कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं.
- आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बने रहना अवांछनीय है. उससे बाहर निकल कर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन बिताओ।
- उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
- उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।