नई दिल्ली: किसी भी देश में राष्ट्रपति को सबसे बड़ा संवैधानिक पद माना जाता है, इसीलिए राष्ट्रपति को ‘फर्स्ट पर्सन’ की संज्ञा भी दी गई है. लेकिन भारत में ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को भले ही शीर्ष स्थान दिया गया हो लेकिन वास्तविक शासन प्रणाली में उसके पास गिने-चुने अधिकार ही होते हैं. सभी जानते हैं कि राष्ट्रपति की ताकत केंद्रीय मंत्रिमंडल में छिपी होती है, उनकी सहमति के बिना राष्ट्रपति इक्का-दुक्का फैसला ही ले सकता है.
अगर बात सैलरी की की जाए तो यहां भी राष्ट्रपति का कद कैबिनेट से छोटा हो जाता है, वर्तमान में एक कैबिनेट सचिव की सैलरी भी राष्ट्रपति से ज्यादा है. इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और गवर्नरों की सैलरी में इजाफा करने का फैसला लिया है. बता दें कि आखिरी बार 2008 में राष्ट्रपति की सैलरी 50 हजार से बढ़ाकर 1.5 लाख हुई थी.
राष्ट्रपति की सैलरी में दो सौ प्रतिशत से ज्यादा की बढ़ोतरी होने वाली है, राष्ट्रपति की वर्तमान सैलरी 1.5 लाख रुपए महीना है जो अब करीब 5 लाख रुपए हो जाएगी. वहीं उपराष्ट्रपति की सैलरी 1.10 लाख रुपए महीने से बढ़कर 3.50 लाख रुपए हो जाएगी. राष्ट्रपति के रिटायर होने के बाद उन्हें 1.5 लाख रुपए की पेंशन मिलेगी, वहीं उनके पति/पत्नी को सेक्रेटेरियल सहायता के तौर पर 30 हजार रुपए महीने मिलेंगे.
गौरतलब है कि सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद से ही राष्ट्रपति की सैलरी को लेकर गहमागहमी चल रही थी. उम्मीद है कि कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा. संसद से मंजूरी मिलने के बाद बढ़ी हुई सैलरी जनवरी, 2016 से ही लागू मानी जाएगी.
काफी समय से सांसदो की सैलरी में भी बढ़ोतरी नहीं हुई है और अगस्त में करीब 250 सांसदों ने सैलरी बढ़वाने को लेकर एक पेटीशन पर साइन भी किए थे, अब अगर राष्ट्रपति की सैलरी बढ़ती है तो इसका सीधा दबाव पीएम नरेंद्र मोदी पर पड़ने वाला है, जो सांसदो की सैलरी बढ़ाने के पक्ष में बिल्कुल भी नहीं हैं.