मां धारी देवी: सच ही तो है, जो आए श्रद्धा लेकर वो ले जाए वरदान…

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उत्तराखंड में देवगण कण कण मे निवास करते है। यहां के वातावरण में भी दैविक पवित्रता की अनुभुति होती है। उत्तराखंड की बात ही निराली है।हर राह एक नई दैवीय शक्ति की कहानी सुनने को मिलती है। ये आप पर है कि आप उसे माने या न माने।

देवभूमि में मां धारी देवी भी उन्ही आलोकिक शक्तियों में से एक है। यहां के रक्षक के रूप में पूजी जाने वाली धारी मां के बारे में कई कहानियां है। उत्तराखंडवासियों का मानना है कि हर विपदा में धारी देवी ही उनकी रक्षा करती है। और समय समय में भक्तों को अपने दर्शन से भी देती है। ऐसी मान्यता है कि मां से सच्चे मन से जो भी मांगों अवश्य पूरा होता है। और मंदिर में लगी हजारों घंटियां इस बात की गवाह है। मां के मंदिर में भक्त मनोकामना पूरी होने पर भेट स्वरूप घंटी और छत्र  मां को अर्पित करते है।

मां धारी देवी उत्तराखंड में आदिकाल से विराजमान है। मां के विषय में कई किदवंतियां है जिसे सुनकर मां के स्वरूप का पता चलता है। माना जाता है कि धारी देवी दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है।  वह प्रात:काल कन्या, दोपहर में युवती शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं।

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पौराणिक धारणा के अनुसार एक बार भयंकर बाढ़ में कालीमठ मंदिर बह गया था। लेकिन धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी होने के कारण धारो गांव में बह कर गई थी। गांववालों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित किया जाए। जिसके बाद गांव वालों ने माता के मंदिर की स्थापना वहीं कर दी।

पुजारियों के अनुसार मंदिर में माँ काली की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है। कालीमठ एवं कालीस्य मठों में माँ काली की प्रतिमा क्रोध मुद्रा में है, परन्तु धारी देवी मंदिर में काली की प्रतिमा शांत मुद्रा में स्थित है। कहते हैं यहीं मां काली की कृपा से महाकवि कालिदास को ज्ञान मिला था। शक्ति पीठों में कालीमठ का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।

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