नई दिल्ली। त्यौहारों का सीजन है। बाजारे पूरी तरह से सज गई है। मौका है भी खास। हर जगह रौनक दिख रही। हो भी क्यों न, करवाचौथ जो है। बाजारों में मेंहदी से लेकर साज सज्जा की दुकानों ने एक खुशनुमा माहौल बना दिया है। ऐसे में महिलाएं जोरो शोरो से खरीददारी तो कर ही रही है। वहीं करवाचौथ के व्रत को लेकर उत्सुक भी है।इस बार करवाचौथ पर सौ साल बाद ऐसा विशेष संयोग बन रहा है जब करवा चौथ का व्रत बुधवार (गणेश भगवान व श्रीकृष्ण का दिन) को पड़ रहा है। इस दिन बुध का रोहिणी नक्षत्र, और चंद्रमा का कन्या नक्षत्र में विचरण हो रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार करवा चौथ का एक व्रत करने से सौ व्रत के बराबर का फल मिलेगा।
चलिए पहले व्रत के दिन क्या करे उस बारे में बताते है…
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मानाया जाने वाला करवा चौथ महिलाओं के लिए बेहद खास है। इसलिए इस दिन की पूजा भी खास विधि विधान से होती है। दिन भर से भूखी प्यासी निर्जला वृत रखने के बाद महिलाएं चंद्रमा देखने के बाद ही जल पीती हैं और निवाला लेती हैं। पुराणों के अनुसार करवा चौथ पूजन में चन्द्रमा को अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। आज के करवा चौथ की पूजा करने का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 43 और 46 मिनट से लेकर 06 बजकर 50 मिनट तक का है। करवा चौथ के दिन चन्द्र को अर्घ्य देने का समय रात्रि 08.50 बजे है। चंद्रमा को अर्घ्य देने के साथ ही महिलाएं शिव, पार्वती, कार्तिकेय और गणेश की आराधना भी करें। महिलाएं खास ध्यान रखें कि चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें। पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास को दी जाती है।
व्रत के दिन सुबह सुबह के अलावा शाम को भी महिलाएं स्नान करें। इसके पश्चात सुहागिनें यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।’ विवाहित स्त्री पूरे दिन निर्जला (बिना पानी के) रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा बनाएं, इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, हलवा बनाएं, पक्के पकवान बनाएं। पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं।
गौरी को बैठाने के बाद उस पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाए इसके बाद माता का भी सोलह श्रृंगार करें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। सुहागनें भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें और करवे में पानी भरकर पूजा करें। इस दिन सुहागिनें निर्जला व्रत रखती है और पूजन के बाद कथा पाठ सुनती या पढ़ती हैं। इसके बाद चंद्र दर्शन करने के बाद ही पानी पीकर व्रत खोलती हैं।