तो क्या वाकई उत्तराखंड के इस मंदिर में साक्षात आए भगवान……

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भगवान के होने न होने के बारे में अक्सर बात की जाती है। कई लोगों ने भगवान को साक्षात् रूप देखने की बाते भी सुनी है। तकनीकी के इस युग में भले ही सब इश्वर रूप पर विश्वास न करते हो पर आज भी कई मंदिर और जगह ऐसी है जहां ईश्वरीय शक्ति का आभास आपकी आत्मा को तृप्त कर देता है।
विश्वप्रसिद्व केदारनाथ धाम की आपदा ने दुनियाभर में दर्द का सैलाब ला दिया था। आपदा क्यो आयी इस को लेकर लोगों ने कई तरह की बाते की। केदारनाथ मंदिर के पुजारी बागेश लिंग ने नेशनल फ्रंटीयर मैगजीन में डा.ब्रिजेश सती ने एक लिखा है। जिसमें पुजारी ने भगवान के अस्तित्व को महसूस करने की बात को स्वीकारा है। लेख के अनुसार  16 जून की रात मंदिर के आसपास की धर्मशालाएं बहने के बावजूद रात डेढ़ बजे पुजारी बाधेश लिंग मंदिर में गए और भगवान केदार का ‌अभिषेक, पूजन और बालभोग लगाया, जिसके बाद वह सुबह साढ़े पांच बजे अपने आवास पर चले गए। कुछ देर बाद अचानक पुजारी को अनहोनी का आभास हुआ। उन्होंने केदार बाबा की भोग मूर्ति को अपने पास लिया और केदारधाम की ओर चल दिए। 

आठ बजे तेज आवाज हुई मंदिर हिलने लगा और मंदाकिनी नदी तेज बहाव के साथ मंदिर के पूर्वी दरवाजे से गर्भगृह में आ गई। इसके बाद मं‌दाकिनी ने गर्भगृह स्थित लिंग का अभिषक कर परिक्रमा की। इसके बाद सफेद रेत मंदिर के अंदर आ गई। अचानक मंदिर का पश्चिमी द्वार खुला और मलबा वहां से ‌बाहर चला गया। यह दृश्य अद्भुत था। पुजारी ने बताया कि इतना मलबा आने के बाद भी गर्भगृह में पहुंचा मंदाकिनी का जल एक दम साफ था।

इसके बाद पानी के साथ आई रेत ने लिंग को समाधिस्त कर दिया था। फिर देखते ही देखते मंदिर में पानी का जल स्तर बढ़ता गया। पुजारी ने बताया कि पानी गले तक पहुंच गया, लेकिन वह केवल भगवान की भोगमूर्ति के बारे में सोच रहे थे। उन्होंने बताया कि सुबह आठ बजे से शाम साढ़े चार बजे तक वह मलबे में दबे रहे। लेकिन बाबा केदारनाथ की परंपरा को खत्म होने नहीं दिया। और तीन दिन तक इधर-उधर भटक कर भोग मूर्ति को गुप्तकाशी के ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचाया।

क्या है भोगमूर्ति

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भोगमूर्ति अभिमंत्रित होती है और जब मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद होते हैं तो भगवान की उत्सव डोली के साथ इस मूर्ति के शीतकालीन पूजा के लिए ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में रखा जाता है।

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