मसूरी में दिखी बूढ़ी दिवाली की धूम, गांव जैसा माहौल पाकर भावुक दिखे लोग

मसूरी में पहाड़ की संस्कृति और लोकपर्वों की रौनक एक बार फिर मसूरी में देखने को मिली। जब अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच ने पारंपरिक जनजातीय बग्वाली (पुरानी दीपावली) का आयोजन किया।

मसूरी में दिखी बूढ़ी दिवाली की धूम 

मसूरी कैम्पटी रोड स्थित पुरानी टोल चौकी के पास जमकर गीत संगीत, नृत्य और पारंपरिक वेशभूषा की छटा बिखरी। पर्व में यमुना और अगलाड़ घाटी के प्रवासी बड़ी संख्या में जुटे और अपने गांव जैसा माहौल पाकर भावुक भी दिखे अगलाड़ यमुना घाटी विकास मंच की ओर से मसूरी में बूढ़ी दिवाली का आयोजन किया गया।

डिबसा की लौ ने ठंड में भरी गर्मजोशी

कार्यक्रम का शुभारंभ डिबसा (होलियात) प्रज्ज्वलन से हुआ। भीमल की लकड़ियों से बने होल्लों को जैसे ही अग्नि दी गई, चारों ओर “जय बग्वाली माता” और “जय हो!” के स्वर गूंज उठे। डिबसा की लौ ने ठंड में भी गर्मजोशी भर दी। प्रवासी महिलाएं और पुरुष इसके चारों ओर परंपरागत नृत्य रासौ, तांदी और सराई में थिरकते नज़र आए। ढोल-दमुआ की थाप और रणसिंघे की गूंज ने वातावरण को पहाड़ की असली खुशबू से भर दियज्ञं स्थानीय खेलों में रस्साकशी प्रतियोगिता सबसे रोमांचक रही।

तांदी और रासौ नृत्य पर जमकर थिरके लोग

महिलाओं की टीम ने ज़बरदस्त तालमेल दिखाते हुए मुकाबला जीतकर दर्शकों की खूब तालियाँ बटोरीं। मंच संचालकों ने इस जीत को “महिला शक्ति का प्रतीक” बताया। अगलाड़ यमुनाघाटी विकास मंच ने कार्यक्रम में प्रस्ताव रखा कि निर्माणाधीन सामुदायिक भवन को सांस्कृतिक धरोहर केंद्र बनाया जाए।

ताकि आने वाले समय में पर्यटक भी यहां की अनूठी संस्कृति को नज़दीक से जान सकें। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि भाजपा प्रदेश मंत्री नेहा जोशी ने कहा कि यमुना और अगलाड़ घाटी की संस्कृति अनोखी और समृद्ध है। उन्होंने कहा कि अपने पहनावे, भाषा, बोली और परंपराओं के प्रति यहां के लोगों में गजब का सम्मान है। यही हमारी असली पहचान है, जिसे हमें आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाना है।

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