
देहरादून : राजस्थान और मध्य प्रदेश में कफ सीरप से बच्चों के बीमार होने और मौत के मामलों के बाद केंद्र सरकार ने सभी कफ सीरप पर बैन लगा दिया है। इसके बाद उत्तराखंड में लोग खांसी के इलाज को लेकर असमंजस में हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों में खांसी आम बात है, लेकिन हर बार कफ सीरप लेना जरूरी नहीं। घरेलू उपाय, सुरक्षित दवाएं और डॉक्टर की निगरानी में इलाज पर्याप्त है। राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के फिजीशियन डॉ. असीम रतूड़ी का कहना है कि अधिकांश वायरल खांसी तीन से पांच दिन में ठीक हो जाती है। मरीजों को गुनगुना पानी पीना, नमक पानी से गरारे करना और ठंडी चीजों से बचना चाहिए।
डॉ. विवेकानंद सत्यवली ने बताया कि दवाओं पर बैन के बाद मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं। जरूरत पड़ने पर वैकल्पिक दवाएं डॉक्टर की सलाह से दी जा रही हैं।
श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. विशाल कौशिक ने कहा कि बच्चों की खांसी शरीर की प्राकृतिक सुरक्षा प्रक्रिया है। अगर खांसी ज्यादा बढ़ जाए, तो लेवोड्रोप्रोपिज़िन एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है, पर इसे केवल डॉक्टर की निगरानी में ही लें।
डॉ. अनुराग अग्रवाल के अनुसार, भाप लेना, सलाइन नेजल ड्रॉप्स, शहद-अदरक का जूस और फेक्सोफेनाडाइन या सेट्रिजीन जैसे विकल्प भी प्रभावी हैं।
इस बीच, एफडीए ने सभी दवा विक्रेताओं से प्रतिबंधित सीरप की बिक्री रोकने और केवल पंजीकृत डॉक्टर की पर्ची पर दवा देने के निर्देश दिए हैं।