कुदरत का कहर: 2013 के बाद 2025 में क्यों टूटा उत्तराखंड पर इतना बड़ा संकट?

2013 की तरह 2025 का मानसून भी बना काल, उत्तराखंड पर टूटा कुदरत का कहर l

देहरादून: उत्तराखंड के इतिहास में 2013 की केदारनाथ त्रासदी को अब तक की सबसे भयावह आपदा माना जाता रहा है। लेकिन 2025 का मानसून भी किसी काले अध्याय से कम नहीं रहा। इस बार कुदरत ने ऐसा कहर बरपाया जिसने सैकड़ों जिंदगियां छीन लीं और पूरा प्रदेश सदमे में डूब गया। इस साल की दो तारीखें— 5 अगस्त और 16 सितंबर— हमेशा के लिए उत्तराखंड की यादों में दर्द बनकर दर्ज हो गई हैं।

5 अगस्त: जब धराली मलबे में दफन हो गया

सीमांत जिले उत्तरकाशी के गंगोत्रीधाम से सटे धराली कस्बे में खीरगंगा नाले में अचानक आई बाढ़ ने चंद मिनटों में पूरे कस्बे को 50 फीट ऊंचे मलबे में बदल दिया।
इस त्रासदी में 69 लोगों की मौत हुई, लेकिन अब तक केवल 2 शव ही बरामद हो पाए।
116 होटल, दुकानें, होम स्टे और 112 मकान मलबे में समा गए। पर्यटन और कृषि के लिए मशहूर धराली अब सिर्फ खंडहर बनकर रह गया। सेब के बाग, राजमा और आलू की फसलें पूरी तरह तबाह हो गईं।

16 सितंबर: देहरादून में मौत की बारिश

दूसरा काला दिन था 16 सितंबर, जब देहरादून जिले में बारिश, बाढ़ और भूस्खलन ने तबाही मचाई।
37 लोगों की जान गई, जिनमें से 10 शव अब तक नहीं मिल सके।
पिथौरागढ़ और नैनीताल में भी एक-एक मौत हुई। देहरादून में तबाही का आलम यह रहा कि नेशनल हाईवे से लेकर ग्रामीण सड़कों तक 32 पुल बह गए। शहर ने इससे पहले इतनी बड़ी त्रासदी शायद ही देखी हो।

तबाही का आंकड़ा

पूरा मानसून सीजन उत्तराखंड के लिए गहरी चोट बनकर आया।
आपदा की चपेट में आकर 213 लोगों की मौत हुई, जिनमें से 110 शव आज तक बरामद नहीं हुए। उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, पिथौरागढ़, नैनीताल समेत लगभग पूरा राज्य प्रभावित रहा। ये केवल आंकड़े नहीं, बल्कि हजारों परिवारों के दर्द की गवाही हैं।

चेतावनी क्या कहती है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्तराखंड की नाजुक भौगोलिक संरचना, जलवायु परिवर्तन, अनियंत्रित विकास और नदी-नालों पर अतिक्रमण हर साल आपदाओं को न्योता दे रहे हैं। धराली और देहरादून की 2025 की त्रासदी केवल घटनाएं नहीं, बल्कि चेतावनी हैं। सवाल यह है कि क्या हम वाकई इन त्रासदियों से सीख रहे हैं, या फिर अगली आपदा फिर किसी नए शहर, किसी नए गांव को उजाड़ने के इंतजार में है?

 

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