देहरादून – उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं से हो रहे बिजली उत्पादन के नाम पर लिया जा रहा जल उपकर (वाटर सेस) और ऊर्जा विकास निधि (पावर डेवलपमेंट फंड) असांविधानिक है। केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने मुख्य सचिव को चिट्ठी भेजकर चेताया है कि इसे रद्द किया जाए। अब राज्य सरकार इस पर मंथन कर आगे का निर्णय लेगी। मंत्रालय की बात मानी गई तो इससे राज्य को करीब 300 करोड़ सालाना की राजस्व हानि होगी। वहीं बिजली उपभोक्ताओं को करीब 30 पैसे प्रति यूनिट का लाभ होगा।
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह के निर्देश पर मंत्रालय ने मुख्य सचिव को पत्र भेजा है। मंत्रालय के पत्र के संबंध में जल्द ही मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक होगी, जिसमें ऊर्जा, वित्त, सिंचाई और अन्य हितधारक चर्चा करेंगे। माना जा रहा है कि केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के दबाव में राज्य सरकार ने यदि बिजली उत्पादन पर जल उपकर व निधि को हटाया तो उसे सालाना करीब 300 करोड़ रुपये का झटका लग सकता है। मंत्रालय की निगाह में यह उपकर की आड़ में कर या शुल्क वसूली है। हालांकि राज्य इसे जल उपकर बता रहे हैं।
क्या है जल उपकर व पीडीएफ
दरअसल, राज्य सरकार ने उत्तराखंड विद्युत उत्पादन पर जल कर अधिनियम 2012 लागू किया हुआ है। इसके तहत उपभोक्ताओं से हर साल यूपीसीएल करीब 170 करोड़ रुपये बतौर जल उपकर वसूल करता है। वहीं, राज्य सरकार सभी जल विद्युत परियोजनाओं से पावर डेवलपमेंट फंड(पीडीएफ) के तौर पर सालाना करीब 130 करोड़ रुपये वसूल करता है। यह शुल्क पानी से बिजली बनाने के नाम पर वसूल किया जाता है।
उपभोक्ताओं के लिए सस्ती होगी बिजली
अगर केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के पत्र के दबाव में राज्य सरकार जल उपकर व विद्युत विकास निधि को खत्म करती है तो इससे प्रदेश के 27 लाख बिजली उपभोक्ताओं को सीधे तौर पर लाभ होगा। बताया जा रहा है कि उपभोक्ताओं के लिए बिजली के दाम करीब 30 पैसे प्रति यूनिट कम हो जाएंगे।
क्या कहा है मंत्रालय ने