36 साल बाद देश में दिखाई दिया दुर्लभ प्रजाति का यूट्रीकुलेरिया फरसीलेटा पौधा।

चमोली – 36 साल बाद देश में कीट-पतंगे खाने वाले पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति यूट्रीकुलेरिया फरसीलेटा (Utricularia furrows) को रिकार्ड किया गया है। ये पौधा चमोली की मंडल घाटी में मिला है। आखिरी बार इसे 1986 में सिक्किम व दार्जिलिंग में रिकार्ड किया गया था। उत्तराखंड वन अनुसंधान की इस मेहनत को 106 साल पुरानी जापानी शोध पत्रिका जरनल आफ जापानी बाटनी में जगह मिली है।

बता दें तीन साल पहले यहाँ सप्तकुंड ट्रैक क्षेत्र में देश में 124 सालों के अंतराल के बाद दुर्लभ प्रजाति का फूल ‘लिपरिस पैगमई’ खिला था। जबकि दो साल पहले जिले की मंडल घाटी में आर्किड पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति ‘सिफलंथेरा इरेक्टा’ खोजी गयी थी जो भारत में पहली बार देखी गयी है।

गौरतलब है कि वन अनुसंधान लगातार दुर्लभ वनस्पतियों की खोज और उनके संरक्षण की दिशा में जुटा है। वन अनुसंधान की गोपेश्वर रेंज के रेंजर हरीश नेगी और जेआरएफ मनोज ने सितंबर 2021 में मंडल घाटी में कीटभक्षी पौधे की एक दुर्लभ प्रजाति को देखा था।

रेंजर हरीश नेगी और जेआरएफ मनोज सिंह की जुगलबंदी ने तीन साल में तीन बड़ी उपलब्धि हासिल की है। 2020 में दोनों ने सप्तकुंड ट्रैक पर आर्किड की दुर्लभ प्रजाति लिपरिस पाइग्मिया को रिकार्ड किया। फ्रांस की प्रतिष्ठित शोध पत्रिका रिचर्डियाना में इसे मान्यता भी मिली थी। इसके बाद मंडल घाटी में ही आर्किड की अन्य प्रजाति सेफालथेरा इरेक्टा को रिकार्ड किया। तब भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण ने माना था कि सेफालथेरा देश में पहली बार रिकार्ड हुई है। अब एक उपलब्धि और मिलनें से उत्तराखंड वन अनुसंधान काफी खुश है। 36 साल बाद कीट पंतग खाने वाले पौधे का पश्चिमी हिमालय में दोबारा रिकार्ड होने से वनस्पति विज्ञानियों में भी खासा उत्सुकता है। यह पौधा पानी वाली जगह पर पनपता हैैं। इसके आसपास की मिट्टी भी उर्वरा विहीन होती है। वनस्पति की अन्य प्रजातियों की तरह यह प्रकाश संश्लेषण क्रिया से भोजन हासिल नहीं करती। बल्कि शिकार के जरिये संघर्ष करते हैं। इनके ब्लैडर का मुंह 10-15 मिलि सेंकड में खुलकर बंद भी हो जाता है। कीटभक्षी प्रजातियों पर रिसर्च को लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञों को दिलचस्पी रहती है।

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