लॉकडाउन में काफी लोगों ने अपनी नौकरी गवाई तो किसी ने अपना बिजनेश ठप होते हुए देखा। कोरोना काल में सभी ने कई समस्या का सामना करा है लेकिन इस बीच देश की कईं महिलायें घरेलू हिंसा का भी शिकार हो रही थी। उत्तराखण्ड की बात करें तो यहां भी महिलाओं के साथ उत्पीड़ना के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। राज्य महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले चार वर्षों में कुल 2314 में से 1604 शिकायतों का निस्तारण किया जा चुका है, जबकि लंबित 710 शिकायतों पर अभी सुनवाई जारी है। वहीं बाल यौन शोषण से संबंधित 139 शिकायतें मिली हैं, जबकि 82 ही निस्तारित हो पाई है।
एक नजर रिपोर्ट में-
रिपोर्ट को देखें तो लॉकडाउन के दौरान शिकायतों में इजाफा हुआ है। कोविड-19 महामारी को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के बीच घरेलू हिंसा की बहुत शिकायतें मिलीं। यहीं नही देश भर में राष्ट्रीय महिला आयोग को 2020 में महिलाओं के खिलाफ हुई हिंसा के संबंध में 23,722 शिकायतें मिलीं, जो पिछले छह वर्षों में सबसे ज्यादा हैं। आयोग के आंकड़ों के अनुसार, कुल शिकायतों में से एक चैथाई घरेलू हिंसा से जुड़ी थीं।
महिलाओं की मदद के लिए सरकार ने सखी को चुना
सख्त कानून और तमाम जागरूकता अभियान के बाद भी उत्तराखंड में महिला घरेलू हिंसा के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। इसकी तस्तीक महिला सशक्तीकरण और बाल विकास विभाग में दर्ज शिकायतें बयां कर रही हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार की ओर से हर राज्य में वन स्टॉप सेंटर (सखी) का गठन भी किया गया है। जहां पीड़ित महिलाओं के लिए चिकित्सकीय, कानूनी व मनोवैज्ञानिक परामर्श और सहायता मुहैया कराई जाती है। उसके बीच महिलाओं के साथ उत्पीड़ना के मामले है जो बढ़ते ही जा रहे है।
वहीं वन स्टॉप सेंटर पीड़ित महिलओं का एक साथी है जों इस दौरान उनकी काफी मदद करता है। महिला हेल्पलाइन नंबर 181 पर आई पीडित महिलाओं की शिकायतों को वन स्टॉप सेंटर में ही भेजा जाता है। जहां महिलाओं को पांच दिन तक रहने, खाने, कपड़े, स्वास्थ्य सुविधाएं और कानूनी सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है। पांच दिनों के बाद महिला का केस देखते हुए उन्हें नारी निकेतन, महिला छात्रावास या घर भेज दिया जाता है। जबकि कोर्ट में चल रहा केस बरकरार रहता है, जिसके लिए महिलाओं को सरकारी वकील मुहैया करवाया जाता है।