भारत में राजनीति कर रहे नेता जोश में इतना कुछ बोल जाते हे कि उन्हें पता तक नही चलता कि उन्होंने क्या बोला। ऐसा कितनी ही बार हो चुका है जब पार्टी के नेता बदजुबानी की सारी मर्यादा पार कर लेते है।अभी बसपा में मायावती और दयाशंकर की कोल्ड वॉर थमी भी नही थी कि एक और पूर्व बसपा नेता कि बोल बिगड़ गये। आज सुबह सोशल मिडिया में वायरल हो रहे एक विडियों में दिखाया गया है कि पूर्व बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित को रिजेक्टेड माल कहा है।
भारत में राजनीति के लिए नेता जो करे वो कम ही है। कुछ माननीयों के हाल तो ये भी है कि मीडिया में सुर्खिया बटोरने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाते है। ओर इस कुछ नही करने के चक्कर में अपनी और संबधित राजनीतिक पार्टी का नाम धूमिल करत है। वोट बैंक के लिए कहिए या फिर पार्टी में विष्वसनियता बनाने के लिए आजकल राजनेता कुछ भी बालने या करने से पीछे नही हटते। और ऐसा आज से ही नही हो रहा। पूर्व बसपा नेता स्वामी प्रसाद ने षीला दिक्षित को रिजेक्टेड माल कहने पर कांग्रसी भड़क गए है। और मौर्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की मांग कर रहे है। मौर्य ने यह बात बीते रविवार हुई संवाददाताओं से कही थी। फिर वीडियो के वायरल होने के बाद सुर्खियों में आयी। बताया जा रहा है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, वैसे तो कांग्रेस पार्टी युवकों की बात करती है और यूपी जैसे बड़े प्रदेश के लिए एक युवा चेहरा कांग्रेस को नही मिल रहा है। और मजबूरी में रिजेक्टेड माल षीला दीक्षित को मुख्यमंत्री के रूप मे लाना पड़ा। वहीं कांग्रेस नेताओं ने स्वामी के बयान को महिला विरोधी बयान करार देते हुए मुकदमा दर्ज कराने की मांग की है। कांग्रेसी नेताओं का कहना है यदि मोर्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज होना चाहिए। यदि इसमें विलंब होगा तो कांग्रेस उग्र आंदोलन करेगी। कांग्रेस के प्रदेश सचिव भगतराम मिश्रा ने कहा कि यह पहली बार नही है जब स्वामी प्रसाद मौर्य ऐसा किया है। इससे पहले मौर्य ने बहमाणों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी की है। बताते इससे पहले भी कई नेताओं से दूसरे नेताओं के खिलाफ भी अभद्र टिप्पणियां की है।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर कब तक ऐसे बिगड़े बोल देश की राजनीति के लिए सही होगे। भारत लोकतांत्रिक देश है। यहां के नेता जनता के द्वारा ही सत्ता में लाए जाते है। ऐसे में अभद्र भाशा का प्रयोग करने वाले सभी वो नेता कैसे देश का अच्छा सोच सकते है। और सवाल यह भी उठता कि पढ़े लिखे होने के बावजूद नेताओं की जुबान फिसलना आम हो गया है। गालीबाज नेता या अभद्र बयान देने वाले नेता युवाओं को जैसी छवि दे रहे है वो किसी भी मायने कैसे स्वीकार की जा सकती है। बदजुबानी की पैतरेबाजी में समाज को कैसे आर्दश नेता मिल सकता है। भारत की राजनीति में कम से कम ऐसे नेताओं की जरूरत से जो पार्टी का हित नही देशहित के बारें में सोचे और लहजे की भाषा का प्रयोग करे।