नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कल कहा, ‘‘हम नहीं चाहते कि राजनीति अदलातों में पहुंचे.’’ न्यायालय इस सवाल पर दलीलें सुन रहा था कि क्या कोई राजनीतिक दल जनहित याचिका दायर कर सकता है.
न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति एन वी रमण की पीठ ने कहा, ‘‘आशंका यह है कि इससे राजनीतिक अदालतों में पहुंच जायेगी. हम यह नहीं चाहते. हम नहीं चाहते कि राजनीति अदालतों में पहुंचे.”
शीर्ष अदालत ने गैर सरकारी संगठन स्वराज अभियान की जनहित याचिका पर यह टिप्पणी उस वक्त की जब संगठन की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने यह कहा कि यदि एक राजनीतिक दल जनहित में याचिका दायर करता है तो अदालतें उस पर सुनवाई कर सकती हैं. इस संगठन ने देश के 12 सूखाग्रस्त राज्यों में किसानों की स्थिति को लेकर जनहित याचिका दायर की है.
यह मामला उस समय उठा जब अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा कि इस गैर सरकारी संगठन ने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है कि वह भले ही राजनीतिक दल के रूप में नहीं बल्कि राजनीतिक दल की एक शाखा के रूप में वजूद जारी रखेगा और इसलिए इस जनहित याचिका से उसे संबद्ध नहीं रहना चाहिए.
रोहतगी ने कहा कि ‘स्वराज इंडिया’ ने निर्वाचन आयोग के समक्ष खुद को राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत कराने के लिये आवेदन किया है जो अभी लंबित है.
अटार्नी जनरल ने कहा, ‘‘उन्होंने (याचिकाकर्ता) पहले ही राजनीतिक दल का गठन कर लिया है. मैं यह दिखाउंगा कि यह राजनीतिक दल अदालत के बाहर क्या करता है. चूंकि अभी तक उनका (स्वराज इंडिया) पंजीकरण नहीं हुआ है, इसलिए इसका मतलब यह नहीं है कि वे राजनीतिक दल नहीं है.’’
रोहतगी ने कहा, ‘‘यदि कोई भी अदालत की कार्यवाही का इस्तेमाल राजनीतिक हित के लिये करता है तो इसमें राजनीतिक मंशा निहित है.’’ हालांकि भूषण का कहना था कि ‘स्वराज अभियान’ और ‘स्वराज इंडिया’ दो अलग अलग संस्था हैं और पहली संस्था राजनीतिक दल नहीं है. उन्होंने कहा कि सवाल यह है कि क्या एक राजनीतिक दल द्वारा उठाया गया मुद्दा जनहित का है. स्वराज अभियान का कोई राजनीतिक हित नहीं है.’’
भूषण ने कहा कि यदि एक राजनीतिक दल याचिका दायर करता है जिसमें जनहित का मुद्दा निहित है और उसका मकसद इससे राजनीतिक लाभ उठाना नहीं है तो अदालतों को इसकी सुनवाई करनी चाहिए. पीठ ने भूषण से जानना चाहा, ‘‘अदालत किस तरह से इसे खंडों में अलग कर सकती है कि यह जनहित का मसला है और यह राजनीतिक दल के हित का है.?’’ इसके जवाब में भूषण ने कहा कि राजनीतिक दल की प्रत्येक पहल की सराहना की जानी चाहिए यदि वह जनहित के लिये है और यदि यह जनहित के लिये नहीं है तो अदालतें याचिका खारिज कर सकती हैं. पीठ ने कहा कि राजनीतिक दल के पास संसद या विधान सभा जैसा मंच है जहां वह ऐसे मसले पर अपनी आवाज उठा सकते हैं.
इस पर भूषण ने कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि राजनीतिक दल के पास मंच है, उसे ऐसा करने से रोका नहीं जाना चाहिए. राजनीतिक दलों को उन जनहित याचिकाओं को आगे बढाने के लिये प्रोत्साहन मिलना चाहिए जो जनहित के हैं.
पीठ ने जब यह कहा कि राजनीतिक दल संसद या विधान सभा में मसला उठा सकते हैं तो उन्होंने कहा कि हो सकता है कि उनकी समस्याओं का समाधान वहां नहीं हो. उन्होंने विमुद्रीकरण के मामले का हवाला देते हुये कहा,‘ यदि यह :राजनीतिक दल:अपना राजनीतिक हिसाब बराबर करने के लिये अदालत के मंच का इस्तेमाल करते है, न्यायालय इसे देख सकता है. विमुद्रीकरण का मसला व्यक्तियों के साथ ही राजनीतिक दलों ने भी उठाया है.
हालांकि पीठ ने कहा कि चूंकि स्वराज इंडिया का राजनीतिक दल के रूप में पंजीकरण का मामला निर्वाचन आयोग में लंबित है, इसलिए वह इस मामले में आयोग के निर्णय का इंतजार करेगा.
सुनवाई के दौरान रोहतगी ने पीठ के समक्ष खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के सचिव की अध्यक्षता में नौ नवंबर को हुयी बैठक का विवरण पेश किया. इस बैठक में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत नियम बनाने के मसले पर विचार किया गया था.
पीठ ने इस कानून के प्रावधानों के अनुरूप राज्य खाद्य आयोग के गठन और इसके सदस्यों की पात्रता के बारे में भी केन्द्र से जानकारी मांगी. इसके साथ ही न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई अब 18 जनवरी के लिये निर्धारित कर दी.
इससे पहले, न्यायालय ने केन्द्र से कहा था कि मनरेगा योजना के तहत राज्यों को देय बकाया राशि का भुगतान किया जाये. न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया था कि सूखाग्रस्त इलाकों के किसानों को विलंब से पारिश्रमिक के भुगतान के लिये मुआवजा भी दिया जाये.
जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, बिहार, हरियाणा और छत्तीसगढ राज्यों के कई हिस्से सूखाग्रस्त हैं और प्राधिकारी पर्याप्त राहत मुहैया नहीं करा रहे हैं.