कितना दोगला है न ये समाज, बड़ी बड़ी बाते करता है। अपने सभ्य होने के सबूत देता है। अपने एजुकेट होने की दुहाई देता है। पर इन सबूतों के परखच्चे तब उड़ते है जब इसी समाज में महिला उत्पीड़न का मामला उजागर होता है। तभी उस पल औरत की आवाज चिल्लाती है, हाय रे समाज! क्या हमे मिल पाएगा कभी “सच वाला सम्मान।“
दो दिन पहले 70वां आजादी दिवस मनाया गया है। सभी तरह के मुद्दों का जिक्र किया गया भाशण में। महिला स्थिति और सुरक्षा भी शामिल संबोधन का महत्वपूर्ण हिस्सा था। पर वास्तविकता शब्दों से परे है। आज भी महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के पुख्ते इंतजाम में भारत बहुत पीछे है। देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई नियम कानून बनाए गए पर सब फाइलों तक ही सीमित रहे। असल में महिलाओं की स्थिति जस की तस है। हाल ही में थॉम्सन राइटर फांउडेशन ने महिलाओं की स्थिति के आंकलन के लिए एक सर्वे कराया था। सर्वे में विकसित और उभरते देश शामिल थे। चौकाने वाली बात सर्वेक्षण में सामने आयी। महिलाओं की स्थिति के मामले में भारत 19वें पायदान पर था। जबकि 18वां स्थान सउदी अरब को मिला है। इससे तो यही जाहिर होता है कि भारत में महिलाओं की स्थिति सउदी अरब से भी खराब है। सर्वेक्षण में सामने आया कि भारत में महिलाए अपने अनुसार वोट भी नही दे सकती।
रेप, यौन शोषण, घरेलु हिंसा, दहेज उत्पीड़न,देह व्यापार,छेड़छाड़ जैसे कई अपराध महिलाओं के साथ होना आम बात बन चुका है। आरोपियों के मन में कानून का भी कोई डर नही है। हैरानी की बात तो ये है सभ्य समाज भी इन अत्याचारों का हिस्सा है। ऐसे अत्याचार जो एक अधेड़ महिला से लेकर एक मासूम बच्ची के साथ किए जाते है। कितने शर्म की बात है, भारत में जहां एक ओर स्त्री को देवी का दर्जा देकर पूजने की बात की जाती है वहीं ऐसे घिनौने अत्याचार के मामले महिलाओं के साथ लगातार बढ़ रहे है।
एक सर्वे के अनुसार भारत में हर चार मिनट में एक रेप होता है। ऐसा नही है कि ये स्थिति के बारे में लोगों को पता नही है। जब भी कोई रेप की घटना होती है तो सब कानून पर उंगली उठाते है। क्या महिलाओं की सुरक्षा सिर्फ कानून की ही जिम्मेदारी है। क्या नागरिक होने के नाते समाज में रहने वालों की कोई जिम्म्ेदारी नही है। क्यो नही समाज के लोग मानसिकता में बदलाव लाने की बात करते है। क्यों पितृसत्ता को ही तब्बजों दी जाती है। जबकिं महिला घर और ऑफिस दोनों जिम्मेदारियों को बखूबी निभाती है।
देश में वोट नीति के अर्न्तगत बेटी पढ़ओं,बेटी बचाओं से कई और अभियान चल रहे है पर इनसे कितना अत्याचार कम हुआ। आज भी भू्रण हत्या हो रही है। दहेज के लिए घर की बहु को प्रताड़ित किया जाता है।मांग पूरी ना होने पर जान से हाथ धोना पड़ता है। राह चलते महिलाओं को उठा लिया जाता है।चलती गाड़ियों में रेप भी होता है। ऐसी कितनी ही घटना है जो महिलाओं की स्थिति को दर्शाती है पर इन्हें सुधारने के लिए अभी तक कोई ठोस कानून नही बने।
कुछ आंकड़े हैरान कर देंगे….
30 सालों में कन्या भ्रूण हत्या के 1.2 करोड़ मामले दर्ज हुए।
दिल्ली गैंगरेप के बाद दिल्ली में 1 से 15 जनवरी के बीच 181 बलात्कार हुए।
औसतन 4 महिलाओं का प्रतिदिन रेप होता है।
देह व्यापार और भीख मंगवाने के लिए 34 हजार महिलाओं का अपहरण हुआ।
ग्रामीण इलाकों में 56 फीसदी लड़कियां सुरक्षा की वजहों से कॉलेज नहीं जाती।
2011-12 के बीच 8616 महिलाओं को दहेज के लिए मारा गया।
47 फीसदी महिलाओं की शादी 18 साल से कम उम्र में।
ऐसे आंकड़े देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि महिलाओं पर जुर्म किस हद तक बढ़ रहा है। ऐसे में समाज और इसमें रहने वाले लोगों में बदलाव लाने की जरूरत है।
मानसिकता बदलने की जरूरत
महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए पहले समाज के लागों को अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। जब तक महिलाओं को अच्छा माहौल नही दिया जाएगा और पुरूशों की सोच में परिवर्तन नही आता तब तक महिलाएं ऐसे ही जुर्म की शिकार होती रहेगी।
महिलाओं में भी परिवर्तन
अपनी स्थिति में सुधार के लिए महिलाओं को स्वंय में भी बदलाव लाने की जरूरत है। जब तक महिलाए अपने अधिकार के बारे में नही जानेगी तब तक महिलाओं पर अत्याचार बरकरार रहेगा। इसके साथ ही महिलाओं का आत्मनिर्भर होना भी जरूरी है। ताकि वो अपने अनुसार अपनी जिदंगी के फैसले ले सके। ओर न ही किसी का गुलाम बनकर रहे।
बेहतर शिक्षा
समाज में परिवर्तन लाने के एि शिक्षित होना अनिवार्य है। महिलाओं और पुरूष दोनों को ही शिक्षित होने से जुर्म को कम किया जा सकता है। ताकि सभ्य समाज का निर्माण किया जा सके।
आजादी सिर्फ अंग्रेजी हुकुमत से नही चाहिए। आजादी चाहिए ऐसी सोच से जो महिलाओं को अपने पैर के नीचे राैंदना चाहती है। उनके सम्मान को चोट पहुचाना चाहती है। जब तक पुरूशप्रधान देश में महिलाओं को “सच वाला सम्मान“ नही मिलता औरतें गुलामी में ही जकड़ी रहेगी। हर रोज अपने सम्मान की लड़ाई के लिए जूझती रहेगी इस उम्मीद में, कि कभी तो मिलेगा उन्हें सच वाला सम्मान।