देहरादून। उत्तराखंड की मशहूर लोक गायिका कबूतरी देवी नहीं रही। उनकी खराब स्थिति को देखते हुए पिथौरागढ़ के चिकित्सकों ने उन्हें हायर सेंटर रेफर किया था। लेकिन हेलीकाप्टर न पहुंचने के कारण उन्हें पुन: पिथौरागढ़ जिला अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और आज सुबह उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया।
जिन दिनों टीवी नहीं हुआ करता था यानि 70 से 80 के दशक में। उन दिनों आकाशवाणी लखनऊ और नजीबाबाद से एक खनकती आवाज सुनाई देती थी। जो हाई पिच पर गाती थी, “आज पनि झौं-झौ, भोल पनि झौं-झौं, पोरखिन त न्है जूंला” और “पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी”। इस आवाज की मालकिन थीं, उत्तराखण्ड की तीजन बाई श्रीमती कबूतरी देवी । कबूतरी देवी मूल रुप से सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ के मूनाकोट ब्लाक के क्वीतड़ गांव की निवासी थीं। इनका जन्म काली-कुमाऊं (चम्पावत जिले) के एक मिरासी (लोक गायक) परिवार में हुआ था।
संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने गांव के देब राम और देवकी देवी और अपने पिता श्री रामकाली जी से ली, जो उस समय के एक प्रख्यात लोक गायक थे। लोक गायन की प्रारम्भिक शिक्षा इन्होंने अपने पिता से ही ली। पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति श्री दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी। ऐसी प्रख्यात गायिका अब नहीं रहीं। इनसे संगीत जगत में शोक की लहर है। मुख्यमंत्री समेत तमाम राजनेताओं ने उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है।