रुद्रप्रयाग, कुलदीप राणा: स्थाई राजधानी गैरसैंण की मांग को लेकर कई स्थानो पर आन्दोलनों की आग सुलग रही है जिससे एक बार फिर गैरसैंण राजधानी बनने की उम्मीद जगी है !! रूद्रप्रयाग में विभिन्न सामाजिक संगठनो , ऱाज्य आन्दोलनकारी, पत्रकारों सहित आमजनमानस सडकों पर गैरसैंण राजधानी की मांग को बुलंद कर रहे हैं हालांकि सत्तासीन पार्टी इस आन्दोलन से असहज जरूर महसूस कर रही है क्योंकि यह आन्दोलन सीधे तौर पर सरकार को घेरने की दिशा में आगे बढ़ रहा है!!बीजेपी की बेचैनी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भाजपा से जुड़े अधिसंख्य लोग भी गैरसैंण के पक्षधर है लेकिन हाई कमान के आदेशों ने उन्हें इस आन्दोलन में शरीक होने से इन्कार किया हुआ है!! अगस्यमुनि में गैरसैण आन्दोलन को लेकर हुई दूसरी बैठक में भाजपा के कई लोग इस आन्दोलन को बल देने के लिए आए थे लेकिन पता चला कि जिले में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उनका जवाब तलब कर दिया!! हालाकि गैंरसैंण को लेकर जो भावना लोगों के दिलों में है उसका बदलना आसान नहीं है!!
गैरसैंण स्थाई राजधानी को लेकर आन्दोलन के स्वर जो मुखर हुये हैं उसे भाजपा को छोड़कर अमूमन सभी दलो का समर्थन मिल रहा है!! भले ही विपक्ष में होने के नाते वह उनकी महत्वाकांक्षा हो लेकिन इस आन्दोलन के लिए सभी की एकता कारगर साबित होगी!!
गैरसैंण राजधानी क्यों जरूरी है इस सवाल के जवाब हमारे चारों तरफ सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, पलायन को देखते ही मिल जा रहा है इस पर ज्यादा लिखने की आवश्यकता भी नहीं है!! उत्तराखंड अलग राज्य मांगने के पीछे की धारणा पहाड़ की राजधानी पहाड़ में हो, अपने ही लोग हमारे नीतिनियंता और योजनाकार हो, क्योंकि अपने लोग रहेंगे तो उन्हें यहाँ की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बारे में मालूम होगा और राजधानी जब पहाड़ में होगी तो यहां की समस्यों से हमारी सरकारे रूबरू रहेंगे और उनका समाधान करेंगे!! लेकिन राज्य तो मिला किन्तु राजधानी वहीं मैदानी भाग में बना दी जहां से पहाड़ के दुख दर्द और सरोकारों से दूर तक नाता नहीं और सत्ता की बागडोर ऐसी चकडैत राजनीति दलों के पास सौंप दी गई जिन्होंने अपनी तिजौरियां भरकर राज्य को कर्ज के बोझ तले दबा दिया!! अब एक बार फिर हमें अपने पहाड़ के अस्तित्व और स्वाभिमान की लड़ाई लडकर पहाड़ को इन चोर डकैतों की चांडाल चौकडी से मुक्त करने के लिए एक होना पड़ेगा!!