देहरादून। प्रति वर्ष दो से तीन आईसीयू केंद्र खोलने की घोषणा कर अनिल बलूनी ने अन्य जन प्रतिनिधियों को आईना दिखाया है। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां काफी गंभीर है। देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर को छोड़ दिया जाए तो 53 हजार 483 वर्ग किलोमीटर में फैला उत्तराखंड पूरा का पूरा पर्वतीय भूभाग है जिसमें 38 हजार वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। पर्वतीय भूभाग और वन क्षेत्र होना प्रदेश को दुरुह और दुर्गम बनाता है। यही कारण है कि यहां दुर्घटनाएं बहुत होती है। आए दिन होने वाली इन दुर्घटनाओं के लिए पहली बार राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने दुर्गम क्षेत्रों में आईसीयू खोलने की पहल की है, जिसके लिए वह अपनी सांसद निधि से सभी 13 जनपदों के लिए राशि देंगे। वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के पांच सांसद हैं। इनमें श्रीमती मालाराज लक्ष्मी शाह टिहरी गढ़वाल से, मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूरी पौड़ी गढ़वाल से, सांसद भगत सिंह कोश्यारी नैनीताल से, डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक हरिद्वार से तथा केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा अल्मोड़ा से, उसके साथ ही साथ महेंद्र माहरा कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सदस्य थे, उनके स्थान पर अनिल बलूनी राज्यसभा सदस्य चुने गए।
इसे इस युवा नेता की पहल कहें या पहाड़ के प्रति प्यार। पौड़ी में घटी दुर्घटना के बाद राज्य सदस्य अनिल बलूनी ने दुर्गम क्षेत्रों में हर साल दो से तीन गहन उपचार इकाई केंद्र खोलने की अनुमति दे दी है, जिसे आईसीयू कहा जाता है। इस आईसीयू से पर्वतीय क्षेत्रों में घटने वाली दुर्घटनाओं में भारी लाभ मिलेगा। यदि यही पहल पूर्व के सांसदों ने की होती तो अब तक कदम-कदम पर आईसीयू केंद्र मिलते, जिसका लाभ पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा करने वाले और स्थानीय लोगों को मिलता, लेकिन इसे संयोग ही कहेंगे कि यह पहल भारतीय जनता पार्टी की ओर से अनिल बलूनी ने की है जो अन्य सांसदों को आईना दिखाने जैसा है।
60 सालों तक जिस दल का शासन रहा आखिर उसके सांसदों ने क्या किया। एक युवा सांसद इस तरह की घोषणाएं कर पर्वतीय क्षेत्रों को राहत दिलाने का काम कर रहा है। लेकिन अन्य सांसद इस मामले पर मौन है। यही स्थिति कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रदीप टम्टा की है जिन्होंने क्षेत्र के लिए मौखिक चिंता तो जताई है लेकिन वास्तव में कुछ नहीं किया।
उससे भी ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण चयन राज्यसभा सदस्य राज बब्बर का रहा है जो सिने अभिनेता होने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के चीफ भी है। इनका कार्यकाल 25 नवंबर 2020 तक है, लेकिन राज बब्बर ने सांसद चुने जाने के बाद मुड़कर उत्तराखंड की ओर देखा तक नहीं है। जबकि भाजपा के पांचों सांसद निधि तथा व्यवस्थाओं को लाभ उत्तराखंड को दे रहे हैं, लेकिन कांग्रेस और उसके सदस्य इस मामले में फिसड्डी साबित हो रहे हैं। इन लोगों को युवा सांसद अनिल बलूनी से सीख लेनी चाहिए।