

राजपूत समाज का सम्मान रखने वाले महाराणा प्रताप ने घास की रोटी खाई लेकिन दुश्मनों के सामने घुटने नहीं टेके। आज उनके वंशज गली-गली, सड़कों पर डेरे डालकर रह रहे हैं लेकिन उन्होंने अपनी परम्परा नहीं छोड़ी। गड़िया राजपूत इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है जो सड़कों पर लोहे का कारोबार करते हैं लेकिन स्थायी घर नहीं बनाते। यह चर्चा महाराणा प्रताप की जयंती पर होनी आवश्यक है। 16वीं सदी के प्रसिद्ध योद्धा महाराणा प्रताप की याद में उनकी जयंती मनाई जाती है। पूरे भारत में रहने वाले सभी धर्म और जाति के लोग प्रताप सिंह को सम्मान देते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यह गाथा तब शुरू हुई जब महान मुग़ल बादशाह अकबर ने महाराणा प्रताप के पिता के शासन के दायरे पर हमला बोला। इसके बाद, प्रताप नए राजा बनें, और जब उन्होंने अकबर से मिले कई प्रस्तावों पर गठबंधन करना स्वीकार नहीं किया तो युद्ध छिड़ गया।
अंतत: प्रताप मुग़लों को मात दे कर उन्हें खदेड़ तो नहीं पाए, लेकिन उन्होंने हल्दीघाटी में हुए पहले मुख्य युद्ध में उन्हें मात दी थी। युद्ध में दो बार हार और एक बार जीत प्राप्त करने के उपरांत भी उन्होंने अपने क्षेत्र और रणनीति का उपयोग करके दुश्मनों को हराया और मार गिराया। इस युद्ध में मुख्य रूप से घुड़सवारों की सेना और हाथियों का उपयोग किया गया था।
भारी संख्या में लोग उनके जन्मदिन के अवसर पर उदयपुर के प्रसिद्ध स्मारक पर जाते हैं, जहाँ उन्हें अपने युद्ध के घोड़े पर बैठा दिखाया गया है। इस दिन उनकी याद और सम्मान में कई धार्मिक प्रथाओं का पालन किया जाता है और रंग बिरंगे जुलूस निकले जाते हैं। आज के दिन आप कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों को देख सकते हैं और प्रताप के सम्मान में लगे चित्रों को भी देख सकते हैं।
महाराणा प्रताप (1568-1597) मेवाड़, राजस्थान के हिन्दू राजपूत राजा थे। जो की राजपूतों के सिदोदिया समुदाय के वंशज थे। उनके साहस और पराक्रम की आज भी लोग मिसाले दिया करते है और इस दिन को महाराणा प्रताप के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक इनका जन्म विक्रम संवत् 1597, के ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि को हुआ था। महाराणा प्रताप को विशेष रूप से हल्दीघाटी के युद्ध के लिए जाना जाता है जिसमे उन्होंने अपने राज्य राजस्थान की मुग़ल सम्राट अकबर से रक्षा की थी।



