भले ही केंद्र के निर्देश के अनुसार हथियारों के लाइसेंस के लिए आवेदन करने से पहले मनोचिकित्सक से अनुमति अनिवार्य करने वाला उत्तराखंड पहले राज्यों में से एक है, लेकिन यहाँ पिछले एक महीने में किसी भी मनोचाकित्सक ने एक भी आवेदक को खारिज नहीं किया है। इसका कारण यह हैं कि मनोचिकित्सकों को खुद ही नहीं पता है कि आवेदक की क्या जांच की जानी चाहिए और क्या प्रशन पूछे जाने चाहिए।
दून मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल, देहरादून के वरिष्ठ मनोचिकित्सक कर्नल (रि ) डॉ। जे एस राणा, ने एक मीडिया वेबसाइट से बातचीत में कहा कि,”हमें नहीं पता है कि हमारी तरफ से किस तरह की अनुमति की आवश्यकता है, लाइसेंस के लिए आवेदन करने वालों के व्यवहार और स्वभाव का विश्लेषण करने के लिए परीक्षणों के बारे में हमें कोई परिपत्र नहीं मिला है। ”
मनोचिकित्सकों ने बताया व्यक्ति के मस्तिष्क के विश्लेषण के लिए आधिकारिक मापदंडों की अनुपस्थिति में, आवेदकों को केवल कुछ रन-ऑफ-द-मिल सवाल पूछे जाते है और इन्ही के आधार पर उन्हें हथियार रखने के लिए प्रमाणित फिट कर दिया जाता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों की देखरेख करते हुए उधम सिंह नगर के अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अविनाश खन्ना ने कहा कि बंदूक लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया में उम्मीदवारों की चिकित्सा जांच शामिल है। अब तक, इसमें आंखों के परीक्षण और आवेदक की सामान्य चिकित्सा फिटनेस का आकलन किया जाता है।
वैसे मनोचिकित्सा परीक्षण कराने से लाइसेंस प्राप्त हथियारों के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी और केंद्र सरकार की इस पहल का सख्ती के साथ पालन होना चाहिए ।