
भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने कहा कि गोरखपुर नाथ-सिद्ध अनुयायियों के लिए अनन्य श्रद्धा का केन्द्र है। गोरखपुर के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यह भूमि भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, संत कबीर, गुरु गोरखनाथ, गुरु दिग्विजयनाथ तथा गुरु अवेद्यनाथ जैसे संतो की पावन तपस्थली है। यह भूमि बाबा राघवदास, हनुमान प्रसाद पोद्दार, रामप्रसाद बिस्मिल, प्रेमचन्द, फिराक गोरखपुरी एवं विद्या निवास मिश्र की स्मृतियों से सुरभित है।
राष्ट्रपति जनपद गोरखपुर में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के अन्तर्गत संचालित महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण करने के उपरान्त इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि सिद्ध योगियों की सर्वोच्च पीठ गोरखपुर में आकर उन्हें हर्ष की अनुभूति हो रही है। 03 वर्ष से भी कम समय में उन्हें यहां एक अन्य महत्वपूर्ण शैक्षिक संस्थान का लोकार्पण का अवसर मिला है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछली गोरखपुर यात्रा में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक सप्ताह समारोह में उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था कि गोरखपुर को ‘सिटी ऑफ नॉलेज’ के रूप में विकसित किया जाए। उन्होंने प्रसन्नता जतायी कि गोरक्षपीठ और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ने महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय की स्थापना करके इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। शिक्षा के प्रसार के माध्यम से सामाजिक उत्थान के लक्ष्य को लेकर वर्ष 1932 में स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद उत्तर भारत में विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में लगभग 50 शैक्षिक संस्थानों का संचालन कर रहा है। इसी क्रम में महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय का लोकार्पण भी हुआ है।

राष्ट्रपति ने कहा कि गोरक्षपीठ सदियांे से भारत के सामाजिक, धार्मिक जागरूकता में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती रही है। भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान इस पीठ ने राजनैतिक पुनर्जागरण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। आज के समय में भी गोरक्षपीठ जनजागरण, जनसेवा, शिक्षा व चिकित्सा सेवा का केन्द्र बनी हुई है। महायोगी गोरखनाथ ने योग के माध्यम से जनसाधारण को सशक्त बनाने का अतुलनीय कार्य किया है। गुरू गोरखनाथ जी एवं उनकी साधना पद्धति का संयम एवं सदाचार से सम्बन्धित व्यावहारिक रूप लम्बे समय से सम्मानीय बना हुआ है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि शंकराचार्य के बाद गोरखनाथ भारत के सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं।
राष्ट्रपति ने शिक्षा के महत्व के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द जी का उल्लेख करते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में शिक्षा के माध्यम से चरित्र निर्माण, शिक्षार्थियों में नैतिकता, तार्किकता, करुणा और संवेदनशीलता विकसित करने तथा रोजगार के लिए सक्षम बनाने पर बल दिया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का एक उद्देश्य हमारी शैक्षणिक संस्थाओं की पाठ्यचर्या और शिक्षा विधि में सुधार करना और छात्रों में अपने मौलिक दायित्वों एवं संवैधानिक मूल्यों, देश के साथ जुड़ाव तथा बदलते देश में नागरिक की भूमिका एवं उत्तदायित्वों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है।
राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय अपने ध्येय को अवश्य प्राप्त करेगा। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा संचालित संस्थाओं में विद्यार्थियों को अत्याधुनिक ज्ञान, विज्ञान की शिक्षा देने के साथ उनके समग्र व्यक्तित्व के विकास पर बल दिया जा रहा है। उनमें भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा, राष्ट्र के लिए त्याग एवं समर्पण की भावना और सामाजिक सहभागिता विकसित करने पर पूरा ध्यान दिया जाता है। आज लोकार्पित किए जा रहे महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में योग, आयुर्वेद, चिकित्सा शिक्षा, उच्च शिक्षा और तकनीकी शिक्षा भी दी जाएगी। समय की आवश्यकता को देखते हुए रोजगार प्रदान करने वाले पाठ्यक्रमों का संचालन भी किया जाएगा।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने कहा कि भारतीय धर्म, संस्कृति व समाज के उद्धार के लिए साधना की पवित्रता व संयमपूर्ण जीवन पर जोर देने वाले महायोगी गुरू गोरखनाथ के नाम पर महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी है। गोरखपुर का इतिहास जितना गौरवपूर्ण रहा है, वर्तमान भी उतना ही प्रेरक और उल्लेखनीय है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ने भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने के साथ ही शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी अलख जगाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ने दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय सहित प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक अनेक शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थाएं स्थापित कीं।





