

देहरादून। एक वरिष्ठ आईएएस ने दूसरे वरिष्ठ आईएएस पर आरोप लगाया है तथा कहा है कि वह सीएम से मिलने नहीं देना चाहते। यह आरोप राज्य चुनाव आयुक्त सुवर्धन ने लगाया है। सुवर्धन जो सौम्य और सुशील आईएएस अधिकारियों में रहे है, का सरकारों के साथ काम करने का लंबा अनुभव रहा है। पहली अंतरिम सरकार में ही तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने उन्हें अपना अपर सचिव बनाया था। यही क्रम दूसरे अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी के कार्यकाल में भी जारी रहा। मुख्यमंत्रियों की कार्यशैली से सुपरिचित और वर्तमान में राज्य चुनाव आयुक्त सुवर्धन ने वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से लगातार मिलने का समय मांगा, इसके लिए उन्होंने सचिव मुख्यमंत्री तथा अन्य अधिकारियों से लगातार समय देने का आग्रह किया, लेकिन इसके लिए मुख्य चुनाव आयुक्त लिखित पत्र देने का निर्देश दिया गया। आरोप तक यहां तक है कि 15 सितंबर को उन्होंने मुलाकात के लिए पत्र भेज दिया। उसके बाद भी उनको समय नहीं दिया गया। आयोग के प्रति सरकार के अधिकारियों को उपेक्षात्मक रवैया इस बात का संकेत है कि कहीं न कहीं मुख्यमंत्री के ईर्द-गिर्द के कुछ अधिकारी संवैधानिक संगठनों को भी हल्के में ले रहे हैं। इतना ही नहीं चुनाव आयुक्त का यह कहना कि उन्होंने ईवीएम से चुनाव कराने के लिए सरकार से 17 करोड़ रुपये देने का आग्रह किया था लेकिन आज तक 17 रुपये नहीं मिले, जिसके कारण आयोग का कार्य प्रभावित हो रहा है। दूसरी ओर मुख्यमंत्री से न मिलवाया जाना भी इस बात का संकेत है कहीं न कहंीं कुछ लोग नहीं चाहते कि संवैधानिक पदों पर बैठे लोग मुख्यमंत्री से मिले और सरकार संवैधानिक संस्थाओं का टकराव टले।
मुख्यमंत्री जहां व्यवस्था बनाने में जुटे हैं, वहीं उन्हीं के कुछ सहयोगी सरकारी मर्यादाओं को भी तार-तार कर रहे हैं। इसका जीता-जागता प्रमाण चुनाव आयुक्त संवर्धन की नाराजगी जो मुख्यमंत्री विंग में बैठे कुछ अधिकारियों के कारण बढ़ी है और इसका परिणाम सरकार को झेलना पड़ रहा है।
एक लंबे अर्से से आईएएस अधिकारियों की इसी टशन की चर्चा उत्तराखंड में रही है लेकिन अब यह आम हो गई है। राज्य चुनाव आयुक्त का एक आईएएस अधिकारी पर आरोप लगाना काफी संगीन है लेकिन यह भी सच है कि कुछ आईएएस अपने को ही सुपर सीएम मान बैठें है जिसके कारण सरकार तथा मुख्यमंत्री दोनों की छवि खराब हो रही है।
राज्य चुनाव आयुक्त सुवर्धन से पहले भी इसी तरह के आरोप दबी जुबान से कुछ अधिकारियों ने लगाये थे लेकिन मुखर रूप से इन लोगों ने कुछ नहीं कहा था। यह पहला अवसर है जब किसी आईएएस अधिकारी और संवैधानिक पद पर बैठे पूर्व अधिकारी ने मुख्यमंत्री कार्यालय पर उंगली उठाई है, जिसकी चर्चा इन दिनों जोरों पर है।



