
देश के कई राज्यों के विधायक भले ही करोड़पति और अरबपति हों, लेकिन एक राज्य ऐसा है जिसके मुख्यमंत्री ने ईमानदारी की मिसाल कायम की है और अपनी इसी बेदाग छवि के कारण वे पिछले 19 साल से सत्ता में हैं। हम बात कर रहे हैं त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार की। त्रिपुरा में वैसे तो लेफ्ट की 1993 से ही सरकार है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के पास सिर्फ 2.5 लाख रुपये से कम की संपत्ति है। माना जा रहा है कि वह देश के सबसे गरीब और साफ-सुथरी छवि वाले मुख्यमंत्री हैं।
सबसे गरीब सीएम माणिक सरकार
माणिक सरकार को 1998 में त्रिपुरा का मुख्यमंत्री बनाया गया था। 2013 में वे चौथी बार सीएम बने। 2013 में उनकी तरफ से एक हलफनामा दायर किया गया था। उस हलफनामे के मुताबिक वे देश के सबसे गरीब सीएम हैं। माणिक सरकार सीएम पद का वेतन और मिलनेवाले भत्ते भी पार्टी को दान में दे देते हैं। इतना ही नहीं सीएम को गुजाराभत्ते के रूप में पार्टी पांच हजार रुए देती है।
ढाई लाख से कम की सम्पति हलफनामे के आधार पर माणिक सरकार के पास केवल 1,080 रुपए नकद हैं। इसके अलावा उनके बैंक अकाउंट में 9,720 रुपए थे और प्रॉपटी के नाम पर 432 स्क्वॉयर फीट के टीन की छत वाला एक पुश्तैनी घर जिसकी उस समय कीमत करीब 2 लाख, 20 हजार रुपए बताई जा रही थी।
छात्र आंदोलन से शुरू की राजनीती एक मध्यम वर्ग के परिवार में जन्मे माणिक सरकार के पिता अमूल्य सरकार एक दर्जी थे जबकि उनकी माता अंजली सरकार राज्य सरकार की कर्मचारी थीं। माणिक सरकार शुरू से ही छात्र आंदोलनों आदि में सक्रिय थे। वे 19 साल के थे जब मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए।
माणिक सरकार ने एमबीबी कॉलेज से बी.कॉम क रहे थे कि उस समय कांग्रेस सरकार के दौरान साल 1967 में खाद्य आंदोलन शुरू हुआ। जिसमें राज्य की सत्ताधारी सरकार की नीतियों के खिलाफ कैंपेन शुरु किया गया। इस आंदोलन में माणिक सरकार ने छात्र संघर्ष का अगुवाई की थी। 23 साल की उम्र में ही उन्होंने स्टेट कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट (मार्क्सवादी पार्टी) को ज्वाइन कर लिया। माणिक सरकार को साल 1978 में पार्टी स्टेट सेक्रेट्रिएट में शामिल कर लिया गया। इसी साल सीएमपी त्रिपुरा में सत्ता में आई। इसके बाद, साल 1980 में 31 वर्ष की उम्र में वे अगरतला से विधायक चुने गए और कुछ ही समय बाद वे सीपीआई (एम) के चीफ व्हीप के लिए चुने गए। माणिक सरकार को बड़ी सफलता साल 1998 में हाथ लगी। 49 साल की उम्र में वे सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्य बनाए गए जो कम्युनिस्ट पार्टी की निर्णायक बॉडी है। ठीक उसी साल वे त्रिपुरा के मुख्यमंत्री भी बने। तब से लेकर आजतक वे सरकार में बने हुए हैं और सत्ता पर काबिज हैं।