यहां लिखी गई थी महाभारत, गरजती हुई बहती थी सरस्वती

सरस्वती नदी का नाम तो सभी ने सुना लेकिन उसे किसी ने देखा नहीं। माना जाता है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होता है इसीलिए उसे त्रिवेणी संगम कहते हैं। लेकिन यह शोध का विषय है कि क्या सचमुच सरस्वती कभी प्रयाग पहुंचकर गंगा या यमुना में मिली। सरस्वती नदी के विलुप्ति होने के पीछे कई तरह की कहानियां हैं और इसे ढूंढने के लिए की तरह की योजनाएं भी हैं. आज हम आपको ले जाते हैं देश के अंतिम गांव माणा, जहां सरस्वती नदी मौजूद है। 
माना जाता है कि प्रयाग में त्रिवेणी का संगम होता है। त्रिवेणी यानी तीन नदियां, गंगा, यमुना और सरस्वती, गंगा और यमुना को प्रयाग में मिलते हुए तो सब देखते हैं पर सरस्वती नदी पर कई तरह के भ्रम हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी अदृश्य रूप से बहकर प्रयाग पंहुचती है और यहां आकर गंगा और यमुना के साथ संगम करती है।

चीन सीमा से लगते देश के अंतिम गांव माणा में सरस्वती को देखा जा सकता है. माना जाता है कि भीमपुल के पास यह है समक्य प्रयाग में सरस्वती नदी बहती है. कहा जाता है कि समक्य प्रयाग में नज़र आने के बाद सरस्वती ज़मीन के अंदर चली जाती है।

कहा जाता है कि बदरीनाथ धाम से चार किलोमीटर आगे माणा में सरस्वती के तट पर वेद व्यास  महाभारत की रचना कर रहे थे. उस वक्त सरस्वती के बहाव के शोर के कारण गणेश व्यास को ठीक से सुन नहीं पा रहे थे. इससे क्रोधित होकर व्यास ने सरस्वती नदी को श्राप दिया और वह धरती में ही समा गईं।

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