मंत्रिमंडल का विस्तार गुजरात चुनाव के बाद!

 देहरादून: 18 मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए सतपाल महाराज, प्रकाश पंत, हरक सिंह रावत, अरविंद पांडे, यशपाल आर्य, को कैबिनेट मंत्री और रेखा आर्य, धन सिंह रावत , को राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया लेकिन हरीश रावत सरकार में मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर जिस तरह से भाजपा आरोप लगाती रही वही भाजपा 8 महीने से दो मंत्री पद को दबाए बैठी है

राजनीति में अक्सर आरोप प्रत्यारोप का दौर देखा जाता है साथ ही पार्टियां अपने गिरेबां में झांकने के बजाय दूसरों की कमियों में ज्यादा उलझी हुई दिखाई देती है. यही वजह है, कि हरीश रावत सरकार को मंत्रिमंडल विस्तार के नाम पर कोसने वाली भाजपा आज पूर्ण बहुमत होने के बाद भी 8 महीने से मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं कर पाई है. इसके पीछे की वजह यह माना जा रहा है कि भाजपा के अंदर कई विधायकों की दावेदारी भाजपा के लिए सर दर्द बनी हुई है क्योंकि कुछ नाम ऐसे हैं जो खुद को मंत्री पद के दावेदार मानते हैं मसलन कांग्रेस के बागी कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन, प्रदीप बत्रा, भाजपा के दिग्गज खिलाड़ी तीन बार के विधायक गणेश जोशी, मेयर और विधायक विनोद चमोली, मुख्यमंत्री हरीश रावत को हराने वाले राजेश शुक्ला, स्वामी यतीश्वरानंद खंडूरी सरकार में खुलकर विरोध करने वाले काशीपुर विधायक हरभजन सिंह चीमा यह वह नाम है जो खुलकर अपनी दावेदारी कर रहे है. इसके साथ ही कुछ जातीय समीकरण के हिसाब से तो कुछ क्षेत्रीय समीकरण के हिसाब से विधायक अपने अपने तरीके से मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए बैटिंग किए हुए हैं. यही कारण है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हो पा रहा है वजह साफ दिख रही है की पोस्ट दो हैं और एक दर्जन से अधिक दावेदार लाइन में खड़े हैं. मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर अब सबकी निगाहें गुजरात चुनाव पर टिकी है क्योंकि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही गुजरात से ताल्लुक रखते हैं गुजरात का चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल है इसलिए भाजपा फूक फूक कर कदम रख रही है. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का भी मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर दिया गया बयान यही संकेत देता है कि गुजरात चुनाव के बाद ही मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है.

यह कोई नई बात नहीं है कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों का डिसीजन दिल्ली दरबार से ही होता है लेकिन जिस तरह से पेच फंसा हुआ है उससे भाजपा या नहीं चाहती कि 18 मार्च 2016 वाली घटना उनके साथ भी घटे यही वजह है कि जो संतुलन है उसको बनाने का अंदरखाने प्रयास चल रहा है हालांकि 18 मार्च 2016 की घटना के वक्त मौजूदा सरकार के पास जो आंकड़ा था और जो आज की परिस्थितियां है उसमें भाजपा को कोई परेशानी नहीं होने वाली है. लेकिन जानकारों की माने तो इसमें विकल्प के तौर पर दो ऑप्शन उनके पास है यानि कि अगर भाजपा तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को हराने वाले विधायकों को मंत्रिमंडल में स्थान देती है तो शायद विरोध की गुंजाइश कम हो जाएगी लेकिन जिस तरह से कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में आए हुए खिलाड़ी हैं उनको भी भाजपा नजरअंदाज नहीं कर सकती है.

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