फीस वृद्धि को लेकर छात्रों और अभिभावकों में आक्रोश!

त्रिवेंद्र सरकार की फीस वृद्धि को लेकर लिया गया फैसला अब सरकार के लिए गले की फांस बनता हुआ नजर आ रहा है. फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों और अभिभावकों में उबाल देखने को मिल रहा है, लेकिन सरकार अपने फैसले पर खड़ी हुई दिखाई दे रही है, खुद मुख्यमंत्री छात्रों की जगह निवेशकों के साथ खड़े हुए दिखाई दे रहे हैं.
2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को निर्देश दिए थे कि निजी विश्वविद्यालय में फीस या शुल्क निर्धारण के लिए शुल्क निर्धारण नियामक समिति का गठन किया करेंगे. उसके बाद उत्तराखंड में भी समिति का गठन किया गया, लेकिन गत दिनों गैरसैंण में हुई कैबिनेट बैठक में फीस को लेकर विधायक पास कर दिया गया. जिसके बाद अब प्रत्येक साल की जो फीस रु० 40,0000 हुआ करती थी अब वह 1,90,0000 रुपय कर दी गई है. फीस वृद्धि को लेकर छात्रों और अभिभावकों में खासा आक्रोश दिखाई दे रहा है. जाहिर सी बात है कि सरकार के फैसले के बाद जो डॉक्टर 25 से 30 लाख रूपय में बन जाता था अब उसे डॉक्टरी पढ़ने के लिए एक करोड़ रुपए खर्च करना होगा जहां सरकार के फैसले को लेकर चारों तरफ आलोचना हो रही है. तो वहीं मुख्यमंत्री इस पर सीधे तौर पर निवेशकों के साथ खड़े हुए नजर आ रहे हैं. मुख्यमंत्री का कहना है कि हिमाचल और अन्य प्रदेश में डॉक्टरी की पढ़ाई महंगी है और इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए निवेशकों का काफी पैसा खर्च होता है.
मुख्यमंत्री के बयान के बाद यह स्थिति तो स्पष्ट हो गई है कि सरकार आंदोलनरत MBBS के छात्रों के साथ नहीं बल्कि  निवेशकों के साथ खड़ी है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि करोड़ खर्च कर डॉक्टरी करने वाला क्या डॉक्टर बनेगा वह, डॉक्टर होगा या कसाई.

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