

देहरादून। उत्तराखंड के जल स्रोतों को रिचार्ज करने की महत्वाकांक्षी योजना प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई है। यह सच है कि गंगा-जमुना का मायका प्यासा है, इस बात से किसी को इनकार नहीं हो सकता। पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवान, पहाड़ के काम नहीं आती, इस मुहावरे को प्रदेश सरकार बदलना चाहती है। प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और पेयजल मंत्राी प्रकाश दोनों पेयजल की चिंता से अवगत है और इन्हें दूर करने के लिए पूर्ण प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है कि सरकार ने उत्तराखंड के बढ़त पेयजल संकट से निपटने के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना बनाने का निर्णय लिया है। अब न तो पेयजल संकट रहेगा और न ही पहाड़ के लोग प्यासे रहेंगे।
पहले की स्थिति अलग थी जब वर्षों वर्ष नदी और गदेरों से पूरे साल पानी मिलता रहता था और पेयजल की किल्लत नहीं होती थी, लेकिन अब यह स्थिति नहीं है। वनों के कटान के कारण प्राकृतिक स्रोत और झरने सूख रहे हैं। विकास के नाम पर चलाई जा रही परियोजनाओं के कारण पेयजल की किल्लत बढ़ी है।
पेयजल के आंकड़े बताते हैं कि जहां सैकड़ों झरने और स्रोत सूखे हैं वहीं नदियों का पानी भी कम हुआ है। अकेले गंगा नदी में 45 प्रतिशत पानी कम हुआ है। इसके पीछे गंदगी और अंधा- धुंध दोहन दोनों माना जा रहा है। इसीलिए सरकार चिंति है। सरकार चाहती है कि बरसाती नदियां हैं या पानी के पुराने स्रोत हैं वो भी धीरे -धीरे सूखने की कगार पर हैं को पुनः रिचार्ज किया जाए। इसके लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधन किया गया है। स्रोत दोबारा पुनर्जीवित करने के लिए जो प्रयास हो रहे हैं यदि वे सफल होते हैं तो पेयजल और इस तरह के कार्यों में लगने वाली बिजली भी बचेगी और लोगों को शुद्ध पेयजल भी मिलेगा। अकेले देहरादून के लिए इस संदर्भ में तीन परियोजनाएं स्वीकृत की गई है, जिनके पूरा होने पर पेयजल संकट से निजात मिलने की पूरी संभावना है। जिन तीन परियोजनाओं को सरकार ने स्वीकृति दी है, उनमें सूर्यधर् सूर्यधर, सोंग परियोजना और मलढुंग परियोजनाओं के नाम शामिल है। इन योजनाओं के बाद राजधानी में पेयजल की किल्लत दूर होने की पूरी संभावना बनी हुई है।



