मां चंद्रघंटा दुर्गा तीसरा स्वरुप हैं। तृतीय नवरात्र के दिन मां दुर्गा के इसी स्वरुप का पूजन होता है। भक्तों में भय से मुक्ति आैर वीरता की भावना पैदा करने वाली देवी का नाम है मां चंद्रघंटा। इनकी उपासना करने से भय का नाश होता है और साहस की अनुभूति होती है। शत्रुओं का नाश करने में मां चंद्रघटा की पूजा करने से बहुत मदद मिलती है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र है इसी कारण ये चंद्रघंटा कहलाती हैं। देवी के इस स्वरूप में उनके शरीर का रंग सोने के समान बहुत चमकीला है और उनके दस हाथ हैं। वे खड्ग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से सज्जित हैं। वे सिंह की सवारी करती हैं आैर दुष्टों के संहार के लिए तत्पर रहती हैं। एेसी मान्यता है कि उनके घंटे की भयानक ध्वनि से सभी पापी, दानव, दैत्य और राक्षस थर थर कांपते हैं।
नवरात्रि के तीसरे दिन इनकी पूजा का अत्यंत महत्व है। विद्वानों का कहना है कि उनकी कृपा से भक्तों को अलौकिक वस्तुओं के दर्शन आैर दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है। पूर्ण श्रद्घा से मां की पूजा करने वालों को कई तरह की पवित्र ध्वनियां सुनाई देती हैं। चंद्रघंटा की आराधना से मन में वीरता और निर्भयता के साथ ही सौम्यता और विनम्रता की भावना आती है। इसलिए मन, वचन और कर्म के साथ शरीर को शुद्घ करके विधि-विधान के अनुसार चंद्रघंटा के शरणागत होकर उनकी आराधना करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार चंद्रघंटा की पूजा से बृहस्पति गुरु से उत्पन्न ग्रहदोष दूर होते हैं। इसके साथ ही उन्नति, धन, स्वर्ण आैर ज्ञान की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा की साधना करने वालों को विभिन्न रोगों से भी मुक्ति मिलती है जिनमें मधुमेह, टाइफाइड, किडनी, मोटापा, मासपेशी आैर पीलिया से संबंधित अनेक रोग सम्मिलित हैं।
सर्वप्रथम स्नानादि कर इस दिन लाल या पीले वस्त्र धारण करें फिर चौकी पर मां चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें। देवी चंद्रघंटा को कनेर के पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए उनके पूजन में ये फूल ही अर्पित करें और फल मिष्ठान का भोग लगाएं। इसके बाद धूप – दीप आदि प्रज्वलित कर कलश आदि का पूजन करें। सभी देवी देवताओं का आचमन करें और फिर रोली -मोली अक्षत से मां चंद्रघंटा की पूजा करें और वंदना मंत्र का उच्चारण करें और मां का ध्यान लगाएं। मां चंद्रघंटा को गाय के दूध से बने पंचामृत का भोग लगाएं और मां चंद्रटा का स्त्रोत पाठ भी करें।कपूर से आरती करें आैर इस मंत्र का जाप करें ‘पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।