जम्मू कश्मीर में 17 जवानों की मौत ने देशभर में आक्रोश भर दिया है। हर कोई बस ये ही पूछ रहा है कि और कितने जवान इस आंतक के गर्द में जाएंगे। शहीदों की वीरगाािा जरूर सीना गव से भरती है। पर क्या इन शहीदों के परिवार नही, क्या इनके अपने नही! देश के लिए शहीद होना गर्व की बात है पर हर आवाज आज यहीं पूछ रही है कि भारत आंतकी हमलों का जबाव क्यो नही दे रहा! आज हर भारतवासी सवाल कर रहा है आखिर कितने और जवान आंतकियों के छलावे का शिकार होंगे।
उरी की षहीदों का दर्द सभी के आंखों में है। पकिस्तान की निंदा भी की जा रही है। राजनेता भी जमकर हूंकार भर रहे है। निंदा कर रहे है। पर ये निंदा सिर्फ शब्दों तक ही क्यो! राजनीतिक पार्टियां शब्दों में ही कड़े रूख अपनाने की बात कर रही है पर असल मायनों में रूखों को सजीव रूप क्यों नही दिया जा रहा? शहीदों के परिवार गर्व से अपने बेटों की मौत पर छ़ाती फैलाते है। पर राजनीतिक पार्टियों का क्या! एक दिन का शोक व्यक्त करके खानापूर्ति करना क्या इन नेताओं के लिए काफी है। क्यों ये सरकारे और राजनेता शहीदों की कुर्बानी भूल कर अपने हित में लगे है? वर्तमान केद्र सरकार क्यो आंतकियों के इरादे चूर करने में हिचकिचाती है? कब तक सरकारे जुबानी जंग में लगी रहेगी? देश की सरकार और राजनीतिक पार्टिया क्यों आंतकवाद को गंभीरता से नही ले रही? कितने सवाल है जो राजनीति का चेहरा लोगों के सामने ला रहे है। कितना विस्मय में डालने वाली बात है कि ऐसी सरकारें सत्ता में है जो मात्र भाषण तक ही सीमित है। देश के अमर सपूतों पर हर भारतीय को गर्व है पर भष्ट्राचार लिप्त नेता शायद इतना सोच भी नही सकते,गर्व तो दूर की बात है।
देश के कोने कोने से आज आवाज आ रही है कि वक्त आ गया है जब इन आंतकियों को सबक सिखाया जाए। देश की वीर सपूतों की कुर्बानी को ऐसे ही बेकार नही जाने दे सकते। हर भारतीय गमजदा होकर सिर्फ आंतक के खिलाफ कड़ा कदम उठाने की मांग कर रहा है। ताकि और जवान कायर आंतकियों के छलावे के षिकार न हो। हर भारतीय यहीं दुआ मांग रहा है कि काश! एक बार हमारे राजनेता अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर एक राय बनाए और आंतकवाद को मुंहतोड़ जबाव दे ताकि असल मायनों में शहीदों को श्रद्धांजलि दी जा सके।