
उत्तराखंड की एक ऐसी तस्वीर जिसको देखने के बाद शायद आप भी सहम जायेंगे, एक ऐसी तस्वीर जो सरकार की नाकामी को दिखाती है। मंगलवार को एक ऐसी घटना सामने आई जहां एक गर्भवती घंटों प्रसव पीड़ा से तपड़ती रही, लेकिन सरकारी चैखट पर उसे मिली तो केवल निराशा। सीमांत इलाके से सुरक्षित प्रसव की आस में पहुंची महिला को आपातकालीन सेवा 108 ने भी हायर सेंटर पहुंचाने से हाथ खड़े कर दिए। ऐसे में परिजन पैदल ही उसे हिमाचल सीमा में आने वाले रोहड़ू अस्पताल की ओर लेकर चल पड़े, लेकिन तकरीबन तीन सौ मीटर चलने के बाद महिला को असहनीय पीड़ा होने लगी। उस मौके पर आसपास की महिलाओं ने चादर का पर्दा बनाकर झूलापुल पर ही उसका प्रसव कराया। अच्छी खबर यह है कि महिला समेत नवजात की स्थिति ठीक है। लेकिन सवाल ये है कि जो विभाग सीएम के पास खुद हो अगर उसके ये हाल हैं, तो बाकी बेहतरी की क्या उम्मीद सरकार से की जा सकती है।
कभी गाड़ी में, कभी सड़क पर, कभी पेड़ के नीचे और अब झूलापुल पर जना बच्चा!
मंगलवार शाम को 3 बजे उत्तरकाशी के बंगाण क्षेत्र के इशाली थुनारा गांव निवासी दिनेश की पत्नी बनीता को प्रसव पीड़ा होने लगी। इसपर परिजन 10 किलोमीटर पैदल चलकर किसी वाहन में लिफ्ट लेकर त्यूणी के सरकारी हाॅस्पिटल लाए। लेकिन हाॅस्पिटल में डॉक्टर न होने के साथ ही संसाधनों की कमी का हवाला देते हुए हाॅस्पिटल कर्मियों ने प्रसव पीड़िता को कहीं और ले जाने की सलाह दे डाली। इतने में महिला के परिजनों ने एमरजेंसी 108 सेवा के कर्मचारियों से उसे सीमावर्ती हिमाचल प्रदेश के रोहडू हाॅस्पिटल ले जाने का अनुरोध किया। लेकिन 108 के स्टाफ ने जाने से मना कर दिया, जब बात नहीं बनी तो परिजनों ने उसे सार्वजनिक वाहन से रोडहू ले जाने का मन बना लिया, परिजन प्रसव पीड़िता को शार्टकर्ट रास्ते से नया त्यूणी बाजार की तरफ ले जा रहे थे, तभी झूलापुल पर वह दर्द से कराहने लगी. इसकी सूचना जैसे ही गुतियाखाटल गोरखा बस्ती की महिलाओं को मिली थोड़ी ही देर में आसपास की महिलाएं चुनी व चादर लेकर झूलापुल पर पहुंची और प्रसव पीड़िता के चारों तरफ घेरा बनाकर किसी तरह उसकी डिलीवरी कराई।