प्रदेश भर के साथ साथ राजधानी देहरादून में बारिश आफत बनकर बरस रही है। लोग डरे सहमे हैं लेकिन सबसे ज्यादा खौफ के साये में वो ज़िन्दगियाँ हैं जो मौत के मुहाने पर हैं। राजधानी देहरादून की बूढ़ी हो चुकी जर्जर इमारतों में ज़िन्दगी बसर कर रहे लोगों का डरना भी जायज़ है। क्योंकि भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में अगर कोई अनहोनी होती है तो राजधानी की ये इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह जाएंगी। लगभग 100 साल पुरानी ये इमारते देहरादून में कई जिन्दगियों के लिए आफत बन सकती हैं। तेज बारिश में गिरासू भवन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ऐसे कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं जब बारिश के कारण गिरासू भवनों की छत और दीवार ढही है।
किसी जमाने में शहर की सबसे ऊंची बिल्डिंग मानी जाने वाली राजपुर रोड में मंसाराम बिल्डिंग अब खंडहर का रूप ले चुकी है। तो चकराता रोड चौड़ीकरण के बाद से यहां पर कई भवन गिरासू का रूप ले चुके हैं। ऐसे ही गिरासू भवनों की सूची में शामिल है एलआईसी बिल्डिंग । कईं परिवार इस बिल्डिंग में रहते है।
राजधानी दून में गिरासू भवनों को गिराए जाने की प्रक्रिया काफी लम्बे समय रही है । हर साल बरसात के समय ही ऐसे भवनों को गिराने की जद्दोजहद तो की जाती है लेकिन नगर निगम इस मामले को प्रशासन पर डाल देता है और प्रशासन निगम पर। नगर निगम के मेयर विनोद चमोली ने बताया कि गिरासु भवनों को चिन्हित किया गया है। लेकिन जिन भवनों को चिन्हित किया गया है उन पर ज़्यादातर मामलों में मकान मालिक और किरायेदारों का विवाद चल रहा हो उसे गिराया नहीं जा सकता और इसपर कार्यवाही के लिए प्रशासन की इजाजत लेनी पड़ती है।हालाँकि इसके लिए दोनों पक्षों को निगम की तरफ से नोटिस जरूर दिया गया है।
बहरहाल यहाँ ज़िम्मेदार महकमों की लापरवाही सैंकड़ों ज़िन्दगियों पर भारी पड़ सकती है बावजूद इसके ज़िम्मेदार कुम्भकर्णी नींद में हैं। ऐसे में सवाल ये कि अगर कोई अनहोनी होती है तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा ? महकमों के सोये अफसर या जान बूझकर जोखिम भरी जिंदगी जी रहे यहां के बाशिंदे…..