देहरादून – दून की पहचान मानी जाने वाली प्रसिद्ध बासमती के स्वाद और खुशबू के बाद अब लीची की मिठास भी गायब हो रही है। बाजार में इस बार देहरादून के लीची मुश्किल से मिल रही है। जो मिल भी रही है उसमें रस और मिठास नहीं है।
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के साथ इमारतों के बढ़ने का असर देहरादून के लीची पर भी पड़ रहा है। दून के प्रसिद्ध बासमती धान की फसल माजरा, वर्तमान आईएसबीटी, सेवला कला आदि क्षेत्र में बड़ी मात्रा में होती थी। इसी तरह डालनवाला, राजपुर रोड़, जाखन आदि क्षेत्रों में लगभग हर घर में लीची के बगीचे होते थे, पिछले 20-22 सालों में तेजी से प्लॉटिंग हुई और अब कंक्रीट के जंगल उग आए हैं। जमीनों के दाम बढ़ने से डालनवाला, ईसी रोड, जाखन, राजपुर आदि स्थानों पर बगीचे में प्लॉट कट रहे हैं, इससे लीची के बगीचे और खेती की जमीन कम हो गई है।
बासमती और लीची दोनों के लिए पानी की अधिक मात्रा की जरूरत होती है पानी कम होने और ग्लोबल वार्मिंग तापमान बढ़ने के कारण भी इनकी पैदावार क्वालिटी दोनों पर असर पड़ता है। यही कारण है कि जिन चीजों के लिए दून मशहूर हुआ करता था वह पहचान अब देहरादून खोते जा रहा है।