
हमारे धर्म-शास्त्र हमें जीवन, धर्म और संस्कार आदि की शिक्षा तो देते ही आये हैं साथ ही प्रेरणा भी देते है . सही और गलत के बीच में जरा सा अंतर होता है और उसी के कारण हमारा भाग्य तय होता है. हम आपने भाग्य अपने ही कर्मो से खुद तय करते है. जब भी हमें कोई सही-गलत या धर्म-अधर्म की शिक्षा देना चाहता है तो फिर वो हमारे धर्म-शास्त्रों या महाकाव्यों का ही सहारा लेता है. महाभारत से हम धर्म और अधर्म के बीच के अंतर का मर्म सबसे अधिक आसानी और व्यापकता से समझ सकते हैं.हिन्दुओ का सबसे बड़ा महाकाव्य महाभारत है.जिसमे एक ही परिवार के लोगों में सिर्फ और सिर्फ कर्मों के आधार पर ही पाण्डवों और कौरवों का वर्गीकरण हुआ था.
धृतराष्ट्र और गांधारी जहां सौ पुत्र और ऐश्वर्य होने के बाद भी उन्हें उचित संस्कार और धर्म के अनुसार चलने की शिक्षा नहीं दे पाए, वहीं कुंती ने सब कुछ सहते हुए भी अपने पांच पुत्रों को सही संस्कारों और धर्म की शिक्षा देकर पाण्डव बना दिया. धर्म का पालन करने के कारण ही पाण्डवों को भगवान श्रीकृष्ण का साथ मिला था जिसकी वजह से उन्हें युद्ध में सफलता प्राप्त हुई थी. अधर्म का पालन कर रहे कौरवों को भगवान श्रीकृष्ण ने कई बार धर्म और अधर्म के बीच का अंतर समझाकर उन्हेंं धर्म के रास्ते पर वापस लाने का प्रयास किया लेकिन अपने अहंकार में चूर कौरवों ने उनकी एक ने सुनी जिससे अंत में वो दुर्गती को प्राप्त हुए.