देहरादून- लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को तगड़ा झटका लगा है। राजस्थान, छत्तीसगढ़, समेत पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में लगे झटके के बाद उत्तराखंड में भी भाजपा की चिंता बढ़ गयी है। उत्तराखंड मे राज कर रही भाजपा की चिंता चंद महीनों बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बढ गई हैं। पार्टी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यह है कि किस तरह पिछले लोकसभा व विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन को बरकरार रखा जाए, क्योंकि इन दोनों चुनावों में उत्तराखंड में भाजपा ने एकतरफा जीत हासिल की थी। वहीं उत्तराखंड में फिलहाल खाली हाथ कांग्रेस की उम्मीदें परवान चढ़ने लगी हैं। मंगलवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए झटका देने वाले रहे। वहीं कांग्रेस के लिए यह नतीजे संजीवनी साबित हुए है।वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में सूबे में भाजपा की सरकार होते हुए कांग्रेस पांचों सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में कहानी पूरी तरह पलट गई। तब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन मोदी मैजिक के सामने कांग्रेस का किला पूरी तरह दरक गया और भाजपा पांचों सीटों पर काबिज हो गई। इसके बाद वर्ष 2017 की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अब तक का सबसे ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 70 सदस्यीय विधानसभा में अस्सी फीसद से ज्यादा, 57 सीटों पर परचम फहराया। साफ है कि लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा, भाजपा उत्तराखंड में अपने चरम पर है। इससे बेहतर चुनावी प्रदर्शन मुमकिन भी नहीं। यही वजह है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तराखंड में भाजपा नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें नजर आ रही हैं क्योंकि पार्टी लोकसभा चुनाव में फिर से पांचों सीटें हासिल नहीं कर पाती तो इसकी तुलना उसके पिछले प्रदर्शन से की जाएगी। यानी, एक भी सीट कम आने पर माना जाएगा कि भाजपा अपने प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाई।वहीं कांग्रेस के लिए राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मिली सफलता उसके नैतिक मनोबल को कहीं ज्यादा बढ़ाने वाली साबित होगी और पार्टी मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक परिस्थिति में लोकसभा चुनावों में उतरेगी। यही वजह है कि अन्य राज्यों के चुनावी नतीजों को लेकर उत्तराखंड में भी कांग्रेस खासी खुश दिखाई दे रही है।