उत्तराखंड में अब चुनावी माहौल नजर आने लगा है। राजनीतिक पार्टियों के सांसद और नेता जो काम को मंजूरी देने के लिए टालमटोल कर रहे है। अब वो काम चुटकी में हो जा रहे है। हो भी कैसे न, जनता को मनाना जो है।
विधानसभा चुनाव नजदीक है। जिसके लिए नेताओं ने कमर कस ली है। जब तक आचार संहिता नही लग जाती, ये माननीय कमर तोड़ मेहनत कर जनता को रिझाने की ड्यूटी में लगे रहेंगे।
ऐसा ही कुछ प्रदेश की हरीश रावत सरकार भी कर रही है। प्रदेश में कई योजनाओं को सरकार ने मंजूरी दी है और कई घोषणाएं भी कर डाली है। अब माने न मानें ये “इफैक्ट” आने वाले विधानसभा चुनावों का ही है।
खैर सब के बीच में उत्तराखंडी जनता के लिए सरकार ने खुशखबरी दी है वो ये कि सरकार की तरफ से 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी मिल गई है तो इसका सीधा मतलब हुआ कि राज्य के सरकारी कर्मचारियों पर सरकार ने तोहफों की बरसात कर दी है। वहीं आठ वर्ष की सेवाएं पूरी कर चुके उपनल समेत अन्य आउटसोर्स कर्मचारियों को संविदा पर रखने का निर्णय भी ले लिया गया। इसी क्रम में गेस्ट टीचरों को स्थायी नौकरी देने के लिए तीन साल की संतोषजनक सेवा देने की शर्त रखते हुए कैबिनेट ने एक अहम प्रस्ताव पास किया है। इसके अलावा सरकार पहाड़ी जनता को मनाने के लिए बीच बीच में कई स्कीम भी लागू करती रहती है ताकि पहाड़ों के गांवों तक मुख्यमंत्री हरीश रावत और उनकी पार्टी को वाह वाही मिलें।
सरकार ने जनता को रिझाने की कोई कसर नही छोड़ रही, पर इन सब के बीच में खबर तो ये भी है कि सरकार से उनके ही पार्टी कुछ नेता खार खाते है। मुख्यमंत्री से प्रदेश अध्यक्ष की कुछ खास बनती भी नही। सीएम रावत को भी पार्टी में चल रहे कलह की भनक है। पर अब इस कलह को शांत कराने के लिए हरीश रावत कौन सा रूप दिखाए ये तो वो ही जाने। अब इन नेताओं की मंशा कांग्रेस का बेड़रपार करायी या डूबाएगी ये तो चुनाव के नतीजे के बाद ही पता चलेगा।
देखना दिलचस्प होगा की सीएम रावत की ये पैतरेबाजी जनता को पसंद आएगी या नही । या पार्टी में अंर्तकलह से जूझ रहे कांग्रेस नेता ही पार्टी की नईया डूबाएंगे।