कल है कुर्बानी का त्यौहार बकरीद, यानि ईद-उल-अजहा……

कल ईद-उल-अजहा जिसे बकरीद भी कहते हैं यह इस्लाम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों का प्रमुख त्यौहार है। ये पर्व रमजान के पाक महीने के करीब 70 दिनों बाद आता है। इस्लाम के जानकारों के अनुसार हजरत इब्राहिम अपने पुत्र हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा के हुक्म पर उनकी राह में कुर्बान करने जा रहे थे, और खुश होकर उन्होंने बच्चे को जीवनदान दे दिया। तभी से इस महान त्याग और उसके परिणाम की याद में यह पर्व मनाया जाता है। खास बात ये है कि इसका बकरों से कोई संबंध नहीं है और न ही यह उर्दू का शब्द है। असल में अरबी में बकर का अर्थ है बड़ा जानवर जो जिबह किया यानि काटा जाता है। यही शब्द कालांतर में बदलते हुए भारत, पाकिस्तान व बांग्ला देश में बकरा ईद बन गया। ये एक अरबी भाषा का लव्ज है ईद-ए-कुर्बां और इसका मतलब है बलिदान की भावना। इस अवसर पर दी जाने वाली कुर्बानी वो है जो हज के महीने में खुदा को खुश करने के लिए की जाती है। इस्लाम के जानकारों के अनुसार कुरान में बताया गया है कि हमने तुम्हें हौज-ए-क़ौसा दिया तो तुम अपने अल्लाह के लिए नमाज पढ़ो और कुर्बानी करो। ईद उल अजहा का त्योहार हिजरी के आखिरी महीने जुल हिज्ज में मनाया जाता है। इसी महीने में दुनिया भर से इस्लाम को मानने वाले सऊदी अरब के मक्का में एकत्रित होकर हज पूरा करते है। ईद उल अजहा का शाब्दिक अर्थ त्याग वाली ईद है इस दिन जानवर की कुर्बानी देना एक प्रकार की प्रतीकात्मक कुर्बानी है।

 

 

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