एक रात की तपस्या से प्रसन्न होते है कमलेश्वर महादेव, होती है संतान प्राप्ति

उत्तराखंड के श्रीनगर स्थित कमलेश्वर मंदिर में 145 निसंतान दम्पतियो ने रातभर खड़े होकर और हाथ में जलता हुआ दीया रखकर दीपक पूजा में भाग लिया है। श्रीनगर का कमलेश्वर मंदिर में होने वाली पूजा निसंतान दंपतियों की सूनी गोद भरने के लिए प्रसिद्ध है। संतान प्राप्ति हेतु उत्तराखण्ड के कुछ खास मन्दिरों में “खड़े दीये” की पूजा की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में “खड़रात्रि” कहते हैं। इसमें संतान पुत्र-प्राप्ति की इच्छुक महिलायें अपने पति के साथ यहां रातभर प्रज्वलित दीपक हाथों में लेकर खड़ी रहकर भगवान शिव की आराधना करती हैं। मान्यता है कि इस पूजा के बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से कई दम्पतियों को संतान की प्राप्ति हुई है। 

इच्छुक दम्पत्ति को वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन पूजा में सम्मिलित होने के लिये मन्दिर कार्यकारिणी से रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोधूलि बेला पर मंहत दीपक प्रज्वलित कर अनुष्ठान का आरंभ करते हैं। मंदिर के ब्राहमणों द्वारा प्रत्येक निसंतान दंपितयों का संकल्प और पूजा कराई जाती है। खड़ा दीया पूजा कर रही महिलाएं दो जुड़वा नींबू, श्रीफल, दो अखरोट, पंचमेवा, चावल अपनी कोख से बांधकर घी से भरा दीपक लेकर रात्रि भर खड़ी रहती हैं। महिला के थक जाने पर उसके पति या अन्य पारिवारिक सदस्य कुछ देर के लिए दीपक हाथ में ले सकते हैं। दूसरे दिन प्रात: शुभ मुर्हत पर भगवान कमलेश्वर का अभिषेक किया जाता है। प्रत्येक दंपति अपना दीपक शिव के प्रतिनिधित्व करने वाले मंहत को साक्षी मान शिवार्पण करते हैं। बाद में श्रीफल देकर निसंतान दंपतियों को भोजन कराया जाता है।

कमलेश्वर मंदिर के महंत आशुतोष पुरी बताते हैं कि कमलेश्वर मंदिर में भगवान विष्णु ने देवासुर संग्राम के दौरान कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन अस्त्र-शस्त्रों के लिए भगवान शंकर की तपस्या की थी।तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने दूसरे दिन सुबह विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। इस पूजा को पूजा एक निसंतान दंपति भी देख रहे थे। निसंतान दंपति ने भगवार शंकर से संतान का वरदान मांगा। माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उन्हें यह वरदान दिया कि जो भी कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के अवसर पर पूरी रात खड़ा दिया अनुष्ठान करेगा उसे संतान की प्राप्ति होगी।

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